किशोर अपराधियों से संबंधित जुवेनाइल शब्द की नई व्याख्या करने की मांग वाली जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 31 जुलाई को सुनवाई करेगा।
मंगलवार को सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली में गतवर्ष 16 दिसंबर को हुई गैंगरेप की घटना के मामले में जुवेनाइल की नई व्याख्या की गुजारिश पर सुनवाई की मंजूरी प्रदान कर दी है।
चीफ जस्टिस पी.सदाशिवम् व जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष स्वामी ने कहा कि अपराधी पर दोष तय करने के लिए आयु के बजाय उसकी मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता को आधार बनाया जाना चाहिए। महज 18 साल की उम्र तय करके गंभीर अपराध में लिप्त जुवेनाइल को पूरी तरह से मुक्त किया जाना उचित नहीं है।
स्वामी ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड पहले ही गतवर्ष हुए कांड के मामले के एक आरोपी के दोषी होने को लेकर फैसले की तिथि 25 जुलाई पहले ही तय कर चुका है। पीठ ने उनके तर्क को दर्ज करते हुए कहा कि बोर्ड को यह सूचित किया जाए कि शीर्ष अदालत में इस मसले पर याचिका लंबित है।
स्वामी ने याचिका में कहा है कि जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम में 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को नाबालिग माना गया है।
इसी के आधार पर जूवेनाइल की व्याख्या करते हुए उन्हें पूरी सुरक्षा प्रदान की जाती है। यह संयुक्त राष्ट्र के कनवेंशन और बीजिंग नियमों का उल्लंघन है जो बच्चों के अधिकार (यूएनसीआरसी) के मुद्दे पर तय किए गए थे।