लोकसभा चुनावों से पहले ओडिशा के लोगों को लुभाने के लिए नरेंद्र मोदी मंगलवार को भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पहुंचे।
उन्होंने गुजरात के आर्थिक विकास में उड़िया लोगों के योगदान की प्रशंसा के भी पुल बांधे।
यहां गुंडिचा मंदिर और श्री मंदिर में पूजा करने के बाद भाजपा की चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष मोदी ने कहा, ‘‘मैं उड़िया लोगों के योगदान का बेहद सम्मान करता हूं।
उन्होंने गुजरात के विकास के लिए बहुत पसीना बहाया है।’ ‘जय जगन्नाथ’ का मंत्रोच्चार करते हुए मोदी ने कहा कि वह सोमनाथ की धरती से भगवान जगन्नाथ की धरती पर पूरे देश के विकास के लिए उनका आशीर्वाद लेने आए हैं। हालांकि आज उन्होंने कांग्रेस समेत किसी राजनीतिक दल का नाम नहीं लिया।
गुजरात और ओडिशा के बीच कई समानताओं को गिनाते हुए मोदी ने कहा, ‘दोनों ही राज्य समुद्र के किनारे बसे हैं। आपके यहां कोणार्क के सूर्य मंदिर में भारत में सूर्य की किरण सबसे पहले पहुंचती है जबकि गुजरात में सूर्यास्त के दौरान सूर्य की अंतिम किरण पहुंचती है।’
मोदी के उडिया भाषण ने पार्टी कार्यकर्ताओं को भी काफी प्रभावित किया। पुरी के नरेश दिव्य सिंह देव से मिलने के बाद उन्होेंने शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से मुलाकात की।
मोदी ने बताया कि शंकराचार्य ने उन्हें देश के समग्र विकास के लिए गंभीरता से काम करने की सलाह दी।
पार्टी कार्यकर्ताओं के मुताबिक अगर पुरी, भुवनेश्वर हवाई अड्डे और राज्य के अन्य हिस्सों में मोदी के भव्य स्वागत से किसी भी तरह के संकेत खोजे जाएं, तो यहां मोदी का करिश्मा काम करता हुआ दिखाई देता है।
हालांकि भाजपा ने मोदी को इस यात्रा को गैर राजनीतिक बताया है, लेकिन गजपति नरेश और शंकराचार्य से मुलाकात के बाद अटकलें शुरू हो गई हैं कि यह अगले चुनाव से पहले हिंदू शक्तियों को एक करने और जनता की धार्मिक भावनाओं को प्रभावित करने की ही एक कवायद है।
फेसबुक पर भी की ओडिशा की तारीफ
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओडिशा में भव्य स्वागत किए जाने की खुशी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर भी जाहिर की। उन्होंने कहा कि दोनों राज्यों के बीच एक मजबूत रिश्ता है।
मोदी ने अपने पेज पर लिखा, ‘शानदार ओडिशा राज्य का अनुभव भी अदभुत रहा। पुरी में भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना करने का सौभाग्य मिला।
जिस ढंग से उन्होंने मेरा स्वागत किया, उसके लिए मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूं।’ उन्होंने दोनों राज्यों के बीच मजबूत रिश्ते की चर्चा करते हुए लिखा, ‘द्वारका और पुरी दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार से संबंधित हैं।
द्वारका में वह भगवान कृष्ण बनकर अवतरित हुए तो पुरी में उन्होंने महाप्रभु जगन्नाथ का रूप धरा। दोनों ही पीठ की नींव आदि शंकराचार्य ने रखी।’उन्होंने ओडिशा के हस्तशिल्प कारीगरों की भी तारीफ की।