अखिलेश के ड्रीम प्रोजेक्ट पर हाईकोर्ट ही लेगा फैसला
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट आईटी सिटी के निर्माण के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के उस अंतरिम निर्णय के खिलाफ कोई भी आदेश जारी करने से इंकार कर दिया, जिसमें निर्माण पर लगी रोक हटा ली गई थी। आईटी सिटी का निर्माण लखनऊ में किया जाना है।
चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एनजीओ से कहा कि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी, क्योंकि मामला हाईकोर्ट में लंबित है और पीठ को यह प्रतीत होता है कि हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के खिलाफ कोई भी आदेश जारी करने की जरूरत नहीं है।
मालूम हो कि हाईकोर्ट ने चकगंजरिया फार्म पर लगाई गई रोक को हटा लिया था। इस फार्म पर आईटी सिटी समेत तमाम महत्वाकांक्षी परियोजनाएं प्रस्तावित हैं।
पीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता रवि प्रकाश मेहरोत्रा ने कहा कि इस जमीन का सरकार अधिग्रहण नहीं कर रही, बल्कि एक सरकारी विभाग से दूसरे विभाग को स्थानांतरित किया जा रहा है। इसमें आईटी सिटी, कैंसर संस्थान, सुपर स्पेशलिटी सेंटर, डेरी विभाग और प्रशासनिक अकादमी स्थापित की जानी है।
मेहरोत्रा ने कहा कि इन योजनाओं से होने वाली आय से लखनऊ में मेट्रो ट्रेन के लिए कोष अर्जित होगा। जहां तक पेड़ काटे जाने का सवाल है, तो सिर्फ वही पेड़ काटे जाएंगे जो निर्माण में बाधक होंगे।
इसके अलावा यहां के जानवरों को दूसरे सुरक्षित केंद्रों में स्थानांतरित किया जाएगा। पीठ ने राज्य सरकार के तर्क से सहमति जताते हुए एनजीओ वीद पीपल को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया।
याद रहे कि हाईकोर्ट ने एनजीओ की जनहित याचिका पर पहले कोई निर्माण न कराए जाने का आदेश दिया था। लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने अपने आदेश को बदल दिया। हाईकोर्ट की ओर से निर्माण को हरी झंडी दिए जाने के खिलाफ एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
एनजीओ का कहना है कि फार्म को हटाकर वहां आईटी सिटी विकसित करने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। साथ ही जानवरों का प्राकृतिक आवास समाप्त हो जाएगा।
वहीं, राज्य सरकार का कहना है कि वह पर्यावरण एवं परिस्थिकीय संतुलन को लेकर सजग है। इसलिए पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर पौधारोपण का कार्य जारी है।
चक गजरिया फार्म राजस्व अभिलेखों में जंगल के तौर पर दर्ज नहीं है। इसे वर्ष 1949 में केंद्र सरकार से राज्य सरकार ने ले लिया था। यह 846 एकड़ पर स्थिति है, जिसमें से 748 एकड़ भूमि पशुपालन विभाग की है और 98 एकड़ जमीन ग्राम समाज की है।