डॉलर के मुकाबले रुपये में आई रिकॉर्ड गिरावट ने चालू खाते के घाटे (सीएडी) को लेकर सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार रघुराम राजन का कहना है कि सरकार चालू खाते के घाटे को काबू में लाने की कोशिशें जारी रखेगी।
सोने के आयात पर अंकुश लगाने के लिए और कदम उठाए जा सकते हैं। रुपया कमजोर होने से आयात महंगा पड़ता है।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का कहना अगर जरूरत पड़ी तो रिजर्व बैंक रुपये को मजबूत करने के लिए जरूरी कदम उठाएगा। रुपये में यह गिरावट डॉलर की मजबूती के चलते आई है।
वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव अरविंद मायाराम ने भरोसा दिलाया है कि रुपये की गिरावट से घबराने की जरूरत नहीं है।
सरकार पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए है और जरूरत पड़ने पर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने रुपये के जल्द ही स्थिर होने की उम्मीद जताई है।
महंगाई और ब्याज दरों पर असर
रुपये में गिरावट का सीधा असर महंगाई और ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों पर पड़ेगा। पेट्रोलियम का आयात महंगा होने से न सिर्फ पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ सकते हैं, बल्कि रिजर्व बैंक के ऊपर भी महंगाई को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती न करने का दबाव बढ़ सकता है।
आगामी 17 जून को रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की मध्यावधि समीक्षा करेगा। पिछले कुछ महीनों में महंगाई से थोड़ी राहत मिलने के बाद ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद बढ़ी है।
निर्यातकों को फायदा, अर्थव्यवस्था को नुकसान
रुपये की रिकॉर्ड कमजोरी थोड़े समय के लिए निर्यातकों को कुछ फायदा पहुंचा सकती है, लेकिन दीर्घ अवधि में यह उनके हित में नहीं है। भारतीय निर्यात संगठनों के संघ (फिओ) के अध्यक्ष एम. रफीक अहमद का मानना है कि रुपये में भारी उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था और कारोबार में भरोसा टूटेगा। उनका कहना है कि वैश्विक मांग में कमी और विकसित देशों में सुस्ती के चलते रुपये की कमजोरी से भारतीय निर्यातकों को ज्यादा लाभ नहीं हुआ है।
खरीदार डिस्काउंट और कीमतों में कमी की मांग कर रहे हैं, जबकि निर्यात पर निर्भर पेट्रोलियम, रत्न व आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक प्रोडक्ट जैसे क्षेत्रों पर महंगे कच्चे माल की मार पड़ रही है। उन्हें फिलहाल आरबीआई के रुख में किसी प्रकार के बदलाव की उम्मीद नहीं है।
उभरते बाजारों की चमक पड़ी फीकी
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रुपये में आई इस गिरावट को दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको और अरब के उभरते बाजारों की मुद्राओं में आई गिरावट से जोड़कर देख जाना चाहिए। वैश्विक स्तर पर उभरते बाजारों की चमक फीकी पड़ती दिख रही है।
एफडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ का कहना है कि उभरते बाजारों की चमक वैश्विक तरलता बढ़ने से आई थी और अब इन मुद्राओं में कमजोरी की वजह भी यही है। पिछले एक सप्ताह में एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) ने भारतीय बाजार से करीब 7,600 करोड़ रुपये बाहर निकाले हैं। रुपये की इस गिरावट से जूझना सरकार व आरबीआई के लिए बहुत मुश्किल होगा।