उत्तराखंड में आए प्रलय में कितने लोगों की जान गई, इस पर सरकार अब भी मौन है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी के मुताबिक मृतकों की संख्या 207 है, लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय ने यह संख्या 556 बताई है।
वहीं, राहत कार्य में जुटी एजेंसियों का मानना है कि त्रासदी ने हजारों की जान ली है। शुक्रवार को हुई उच्चस्तरीय बैठक में इन एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को मृतकों की संख्या के बारे में अपने अनुमान बताए दिए।
इनके मुताबिक त्रासदी में मरने वालों की संख्या सैकड़ों में नहीं, बल्कि हजारों में है। हेलीकॉप्टर से बचाव कार्य के दौरान कई ऐसे इलाके भी देखने को मिले हैं, जहां जीवन का नामोनिशान नहीं है।
वैसे अब भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां एजेंसियां अब तक नहीं पहुंच पाई हैं। यही कारण है कि सरकार ने बृहस्पतिवार को ही मानवरहित टोही विमानों के साथ-साथ सैटेलाइट से तस्वीरें लेने का फैसला कर लिया था।
उच्चस्तरीय बैठक में राहत व बचाव कार्य की समीक्षा के अलावा त्रासदी में मरने वाले लोगों की संख्या पर विस्तार से बातचीत हुई।
सूत्रों के मुताबिक वायुसेना के प्रतिनिधि ने बताया कि हेलीकॉप्टर से उड़ान के दौरान कई इलाके ऐसे भी दिखे जहां जीवन का नामोनिशान नहीं हैं। वहां चारों तरफ सिर्फ लाशें बिखरी पड़ी हैं।
शिंदे को बताया गया कि त्रासदी वाले इलाकों में 4,500 खच्चर वाले पंजीकृत हैं। मगर हादसे के बाद से इनमें से ज्यादातर लापता हैं। बचाव टीम अब तक बनकोट, डिडोली, फाटा, गुप्तकाशी, सोनप्रयाग, रामपुरा, कीर्तिनगर से जुड़े कई इलाकों में पहुंच ही नहीं पाई है।
सूत्रों के मुताबिक बैठक में एसएसबी के आईजी (ऑपरेशन) चंचल शेखर ने कहा कि कई इलाकों में दस से 12 फुट ऊंचा रेत का टीला बन गया है। इसके अलावा ज्यादातर मकान पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं। जो जीवित हैं उन्हें अपने साथ गए लोगों की जानकारी नहीं है। ऐसे में मृतकों की संख्या काफी अधिक हो सकती है।
गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार फिलहाल मृतकों की संख्या के बदले राहत एवं बचाव कार्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है। सरकार को डर है कि मृतकों की वास्तविक संख्या सामने आने पर राजनीतिक महाभारत खड़ा हो सकता है। यही कारण है कि सरकार मृतकों की संख्या में बढ़ोत्तरी की संभावना से तो इंकार नहीं कर रही है, मगर फिलहाल हजारों लोगों के मरने की पुष्टि भी नहीं कर रही है।