कानपुर। बर्फीले इलाकों में बारिश के बाद मुसीबत का सबब बनने वाले जूट के जाल से भारतीय सैनिकों को जल्द छुटकारा मिल जाएगा। रक्षा सामग्री एवं भंडार अनुसंधान तथा विकास स्थापना (डीएमएसआरडीई) का सिंथेटिक कमोफ्लेज नेट उनका साथी बनेगा। बर्फ जैसी रंगत लिए यह नेट न तो भीगेगा और न ही अल्ट्रावायलेट किरणों का प्रभाव सैनिकों पर पड़ने देगा। ये छद्म आवरण का भी काम करेगा, जिससे सैनिक शत्रु की निगाह से भी बच सकेंगे।
भारतीय सेना से मिले आर्डर पर 300 करोड़ रुपये से 66,686 जाल की आपूर्ति होगी। भारतीय सेना के पास वर्तमान में जूट के जाल हैं। इनका प्रयोग शेल्टर के लिए किया जाता है। यही जाल लेह-लद्दाख, सियाचिन और अन्य बर्फीले स्थानों पर इस्तेमाल होते हैं। बारिश में भीगने पर यह जाल वजन से दोगुने हो जाते हैं और सड़ने भी लगते हैं। ऐसे में इन्हें लेकर चलना सैनिकों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होता। यह जाल छद्म आवरण बनाने में भी सक्षम नहीं होते और शत्रु सेना की सीधी निगाह में रहते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह जाल अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव भी नहीं कर पाते हैं। सेना काफी समय से जूट के जाल में बदलाव चाह रही थी।
डीएमएसआरडीई को जरूरत के मुताबिक जाल तैयार कराने को कहा गया था। रक्षा उत्पादन तैयार कराने वाले उद्योगों के साथ सिंथेटिक व नाइलोन का जाल तैयार कराया गया। यह जूट के जाल के वजन का आधा है। भीगने पर भी कोई परेशानी नहीं, न ही सड़ने का खतरा।
सेना के अधिकारियों ने इसका परीक्षण किया और स्वीकृति दे दी। डीएमएसआरडीई यह नेट तैयार करेगी। मैदानी और मरुस्थलीय इलाकों के लिए भी बाद में जाल तैयार कराए जाएंगे। इसके लिए खंभों की डिजाइन में बदलाव करने को कहा गया है। इसके बाद देश में जूट के जाल नहीं दिखेंगे। डीएमएसआरडीइ के निदेशक एके सक्सेना ने कहा कि पोल डिजाइन बदलने के बाद एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के ऑर्डर मिलेंगे।