छोटे और मझोले उपक्रमों की निर्यात क्षेत्र में चार फीसदी तक हिस्सेदारी गिरने के बाद अब सरकार सक्रिय हुई है।
इसी के तहत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय निर्यात को दोबारा पुराने स्तर पर लाने के लिए नए रास्तों को तलाशने की तैयारी शुरू कर चुका है। साल 2012-13 में छोटे और मझोले उपक्रमों की निर्यात क्षेत्र में हिस्सेदारी 40 फीसदी से गिरकर 36 फीसदी पर आ गई है।
निर्यात को बढ़ाने के लिए किस तरह के कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमारी सबसे पहली कोशिश है कि कैसे कारोबारियों के लिए कारोबार करना आसान किया जाएगा, जिसके लिए एक समिति का गठन किया गया है जिसमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के सचिव, श्रम मंत्रालय के सचिव और खाद्य और प्रसंस्करण मंत्रालय के सचिव शामिल हैं। समिति ने अपनी ड्रॉफ्ट रिपोर्ट तैयार कर ली है।
अधिकारी के अनुसार इसके तहत तीन प्रमुख मुद्दों पर जोर दिया गया है। पहला यह कि कैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे और मझोले कारोबारियों के उत्पाद प्रतिस्पर्धी हो सके। यानी उनकी लागत कम होने के साथ-साथ गुणवत्ता में भी उत्कृष्टता हो।
दूसरा प्रमुख जोर इस बात पर है कि श्रम कानूनों को किस तरह से आसान किया जाय, जिससे कि इंस्पेक्टर राज के प्रभाव को कम किया जा सके। तीसरा प्रमुख जोर लागत कम करने के लिए बेहतर तकनीकी का इस्तेमाल सेक्टर में कैसे बढ़ाया जाय।
अधिकारी के अनुसार समिति इसके तहत टेक्सटाइल इकाइयों के लिए चल रही स्कीम टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन फंड की तरह एसएमई के लिए भी फंड बनाने पर विचार कर रही है। इसके अलावा श्रम कानूनों को मौजूदा नियमों की तुलना में काफी सरल बनाने पर जोर है, जिसके तहत सिंगल पेज में विवरण देने की प्रक्रिया लागू की जा सकती है।
इसके अलावा एमएसएमई संगठन इस बात की लगातार मांग कर रहे हैं कि एक्साइज ड्यूटी में छूट की मौजूदा सीमा को बढ़ाया जाए। ऐसे में मंत्रालय नए मसौदे में इसकी भी संभावना तलाश रहा है।
देश में छोटे और मझोले उपक्रमों की कुल संख्या 2.61 करोड़ है, जिनकी निर्यात हिस्सेदारी 40 फीसदी से गिरकर 36 फीसदी पर आ गई है। जबकि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में एसएमई कारोबारियों की हिस्सेदारी 40 फीसदी से ज्यादा है।