नई दिल्ली ।। सरबजीत सिंह के मामले में यूपीए सरकार पर कुछ न करने का आरोप लगाया जा रहा है, लेकिन सच यह है कि भारत सरकार ने सरबजीत की रिहाई के लिए अपनी तरफ से भरपूर कोशिश की। पाकिस्तान इसे टालता रहा। 2010 से 2012 के बीच भारत ने पाकिस्तान से बातचीत में 12 बार सरबजीत की रिहाई का मसला उठाया। सर्वोच्च स्तर पर भी यह मसला उठाया जाता रहा।
दस्तावेज बताते हैं कि भारत ने विदेश सचिवों की बैठक में चार बार यह मसला उठाया। पाकिस्तान के गृह मंत्रियों और गृह सचिवों ने दो-दो बार इस मुद्दे का सामना किया। गौरतलब है कि सरबजीत का मामला जब से जोर पकड़ा भारत ने हर संभव मौके पर यह मांग उठाई। इस वजह से पाकिस्तान की भारत से संबंध सुधारने की इच्छा का मापदंड यह सवाल बन गया था पाक सरकार सरबजीत के सवाल पर कैसा रुख अपनाती है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2005 में ही न्यू यॉर्क में तत्कालीन पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ बातचीत में यह मसला उठाया था और मुशर्रफ ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि पाकिस्तान इस मामले को ‘मानवीय आधार’ पर निपटाएगा।
उनके इस आश्वासन के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री के नटवर सिंह ने पहले पाक उच्चायुक्त के साथ और फिर मुशर्रफ के साथ बातचीत में इस मसले को उठाया था। फॉलो अप के तौर पर विदेश मंत्रालय ने 2006 में भी पाक विदेश मंत्रालय को इस बारे में लिखा था।
चूंकि यह मसला सरकार के साथ बातचीत में शामिल हो गया था, इसलिए सरबजीत के सवाल पर पाक सरकार के रुख में थोड़ी नरमी तो दिखी, लेकिन सरबजीत की रिहाई पर विचार करने का संकेत उसने नहीं दिया। 2005 में सरबजीत को कांउसंलर ऐक्सेस हासिल हो गया। इसके बाद उसके साथ ऐसी पांच और मीटिंग हुईं। आखिरी मीटिंग 6 सितंबर 2012 को हुई। उसके परिवार को भी पाकिस्तान जाकर उससे मिलने की दो बार इजाजत दी गई। दूसरी मुलाकात जून 2011 को हुई।
मगर, ये सब रियायतें एक तरह से बेकार साबित हुईं जब 26 अप्रैल 2013 को लाहौर की जेल में सरबजीत पर कैदियों का जानलेवा हमला हुआ जिसकी वजह से 3 मई 2013 को उनकी मौत हो गई।
सुबोध घिल्डियाल