वाराणसी अभी तक आपने काई को देख नाक सिकोड़ी होंगी, मुंह बिचकाया होगा। लेकिन किसी ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि कुंडों, तालाबों व घर के सिंक में जमने वाली काई से क्रीम भी बन सकती है। दो वर्षो में काई से बनी क्रीम का उपयोग किया जा सकेगा।
काई से क्रीम बनाने का शोध बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वनस्पति विान विभाग के वैानिक प्रो. आरपी सिन्हा ने किया है। प्रो. सिन्हा ने बताया कि शोध के दौरान पता चला कि प्रकृति में फैल रहा प्रदूषण ओजोन के सुरक्षा कवच को दिन प्रतिदिन कमजोर करता जा रहा है। परिणाम है कि सूर्य की पराबैंगनी (अल्ट्रा वायलेट) किरणों का प्रभाव बढ़ रहा है। इसकी वजह से हमारी त्वचा को भारी नुकसान पहुंचता है। सनबर्न व त्वचा कैंसर का मुख्य कारण पराबैंगनी किरणों ही बनती हैं। प्रो. सिन्हा और उनकी टीम ने बिहार के राजगीर जिले में स्थित गरम कुंड में जमी नील-हरित शैवाल (काई) के नमूने को लिया और उनमें निहित तत्वों को जाना। टीम ने देखा कि काई में तीन प्रमुख तत्व हैं जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों से लड़ पाने में पूरी तरह से सक्षम होते हैं। ये तत्व हैं- माइकोस्पोरिन, एमाइनो एसिक तथा साइटोनेमीन यौगिक। उन्होंने इसका पहला प्रयोग चूहों पर किया जो पूरी तरह सफल रहा। प्रो. सिन्हा बताते हैं कि इनमें मनुष्यों की सुंदरता निखारने की भी क्षमता है। इसका प्रयोग फेस क्रीम के रूप में किया जा सकता है। प्रयोगशाला स्तर पर उन्होंने कार्य पूरा कर लिया है। प्रो. आरपी सिन्हा विभिन्न कॉस्मेटिक कंपनियों को आमंत्रित कर रहे हैं कि वे काई से जनता की उपयोगिता के लिए सौंदर्य उत्पाद बनाएं। उनके तथ्यों की जांच अब मुंबई की लैब में चल रही है जो लगभग पूरी हो चुकी है। दो वर्ष में त्वचा को पराबैंगनी किरणों से बचाने के लिए काई से बनी क्रीम बाजार में उपलब्ध होगी।