भारत की राजनीति में जिस तरह गांधी परिवार का दबदबा माना जाता है, उसी तरह पाकिस्तानी राजनीति भुट्टो परिवार के बिना पूरी नहीं होती।
पिछले चुनावों में पीपीपी ने अपनी करिश्माई नेता बेनजीर भुट्टो को एक आत्मघाती हमले में गंवा दिया था। लेकिन सिंध प्रांत के लोगों के दिल में वो अब भी अहम स्थान रखती हैं।
दूसरी तरफ लोग पिछले पांच साल में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार के प्रदर्शन से मायूस भी हैं।
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले सिंध प्रांत में पार्टी के बहुत से कार्यकर्ता उससे खुश नहीं हैं।
सिंध प्रांत में रहमतपुर में रहने वाले जावेद अली का दिल इस चुनाव में बंटा हुआ है। एक तरफ है बेनजीर भुट्टो से उनकी मोहब्बत है, तो दूसरी तरफ उनका कहना है कि पीपीपी की पिछली सरकार ने आम लोगों के लिए कुछ नहीं किया है।
नाई की दुकान पर मामूली से मेहनताने पर काम करने वाले जावेद पिछले पांच साल से उस नौकरी के लिए धक्के खाते रहे, जो शायद उनका हक थी। वो कहते हैं कि कम आमदनी वालों को ध्यान में रख कर चलाई गई बेनजीर इनकम सपोर्ट योजना के तहत भी उनके परिवार को कोई मदद नहीं मिली।
लेकिन बेनजीर से मोहब्बत फिर भी है। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी सरकार की बेरुखी की शिकायत भी वो खुदा बख्श गढ़ी में बेनजीर की कब्र पर जाकर ही करते हैं। उनका परिवार बरसों से भुट्टो के नाम पर वोट डालता आया है।
इसी कब्र पर गफ्फार का परिवार भी आया है जो उनकी शान में शायरी लिखता है। वो भी सरकार से खफा नजर आते हैं।
ऐसे में पीपल्स पार्टी के बहुत से कार्यकर्ता अब उन असरदार परिवारों का रुख कर रहे हैं जिन्होंने पार्टी के टिकट की बजाय स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इन्हीं में अब्बासी परिवार भी है जो पहली इस बार पीपीपी के टिकट के बिना चुनाव मैदान में है।
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के पूर्व नेता मुअज्जम अब्बासी कहते हैं, “जब तक बेनजीर भुट्टो थी तो हम बिना शर्त उनके साथ थे। वो जैसी भी थी, अपनी थीं। लेकिन अब 2013 के चुनाव में हम लोगों को अनदेखा किया गया।”
बेनजीर भुट्टो की मौत के बाद पार्टी की कमान उनके पति आसिफ अली जरदारी ने संभाली जो अब देश के राष्ट्रपति हैं। जरदारी और बेनजीर के बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी भी पीपीपी के सहअध्यक्ष हैं।
लेकिन अब्बासी परिवार को पीपीपी नेतृत्व से मायूसी ही हाथ लगी है। भुट्टो परिवार के साथ अब्बासी परिवार का मेलजोल पीपल्स पार्टी के बनने से पहले का रहा है और इनके घर में मौजूद तस्वीरें इसकी गवाही देती हैं।
इलाके में लोग अब्बासी परिवार को भुट्टे खानदान की सोच का तर्जुमान समझते हैं। लेकिन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की बहन फरयाल तालपुर लोगों की नाराजगी से चिंतित नहीं दिखाती हैं। वो भुट्टो परिवार की पारंपरिक सीट लाड़काना से चुनाव मैदान में उतरी हैं।
वो कहती हैं, “लोग चुनावों में खड़े होते हैं, चुनाव लड़ते हैं। कहीं कुछ मांग होती हैं, कहीं नाराजगी भी होती हैं। हम तो इसे पीपल्स पार्टी की लोकप्रियता कहेंगे क्योंकि हर कोई पार्टी का टिकट हासिल करना चाहता है। ”
ऐसे में 11 मई को होने वाले चुनावों में सिंध के लोग अपने दिल में भुट्टो परिवार से लगाव को आधार बनाकर वोट डालेंगे या फिर उनके सामने पिछले पांच साल के दौरान सरकार का कामकाज होगा, देखना दिलचस्प होगा।