नई दिल्ली। धार्मिक आस्था की आड़ लेकर राजधानी की सड़कों व गली-मोहल्लों में जगह-जगह सरकारी जमीन पर कब्जा कर अवैध रूप से बनाए गए धार्मिक स्थलों को अब ढहाया जाएगा।
धार्मिक स्थलों की आड़ में सरकारी जमीन कब्जाने के मामलों को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर व आरएस एंडलॉ की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह तुरंत इस मामले में बैठक बुलाएं, जिसमें यह तय किया जाए कि इन अवैध धार्मिक स्थलों को कैसे समयबद्ध तरीके से ढहाकर जमीन को कब्जा मुक्त कराया जाए।
खंडपीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव दो सप्ताह के अंदर गृह मंत्रलय के संयुक्त सचिव, दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव, डीडीए के उपाध्यक्ष, दिल्ली पुलिस आयुक्त व दिल्ली सरकार के गृह विभाग के विशेष सचिव के साथ बैठक करें। इसके बाद अदालत में रिपोर्ट दायर करके बताया जाए कि इन अवैध निर्माण को गिराने के लिए क्या कदम उठाए गए। अब इस मामले में 22 अगस्त को सुनवाई होगी।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि खुद एक धार्मिक कमेटी ने 75 में से 40 धार्मिक स्थलों को गिराने की अनुशंसा की है। बाकी 34 के बारे में कहा गया है कि इनको गिराने का विरोध हो सकता है, इसलिए इन स्थलों के आसपास के लोगों को समझाकर और उनसे बातचीत करके गिराया जा सकता है। 75 की सूची में एक धार्मिक स्थल को गलती से शामिल कर लिया गया था, वह अवैध तरीके से नहीं बना है। न्यायालय ने सरकार को इस बात पर भी फटकार लगाई है कि वह अपनी जमीन पर वापस कब्जा लेने में उचित कदम नहीं उठा रही है।
अदालत ने कहा कि डीडीए अभी तक 7.82 एकड़ जमीन पर ही कब्जा ले पाया है। जो कि पर्याप्त नहीं है, इसलिए इस दिशा में जल्दी से कदम उठाए जाएं। अदालत ने दिल्ली पुलिस की भी खिंचाई की है, क्योंकि उसने अपने-अपने इलाकों में हुए अवैध निर्माण की सूची धार्मिक कमेटी को नहीं सौंपी है।
गौरतलब है कि 17 अप्रैल को न्यायालय ने सभी एसएचओ को निर्देश दिया था कि वह अपने-अपने इलाकों में डीडीए की जमीन पर बने अवैध धार्मिक स्थल की सूची बनाकर सौंपें। परंतु उत्तरी-पूर्वी जिले के अलावा किसी अन्य ने अपनी सूची नहीं सौंपी।
ऐसे में न्यायालय ने दक्षिण, दक्षिण-पूर्वी व बाहरी जिले के एडिशनल कमिश्नर को निर्देश दिया है कि दो सप्ताह के अंदर धार्मिक कमेटी के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करें कि उनके इलाकों में कितने अवैध धार्मिक स्थल बने हुए हैं।
वर्ष 2005 में एक मीडिया रिपोर्ट पर दिल्ली उा न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया था। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि लगभग 43,000 एकड़ सरकारी जमीन प्रयोग नहीं हो रही है या उस पर अवैध कब्जा कर लिया गया है। उस समय से अब तक न्यायालय इस मामले में स्वयं निगरानी कर रहा है।
पिछले साल जुलाई में न्यायालय ने दिल्ली सरकार व डीडीए को फटकार लगाई थी कि क्योंकि वह इस संबंध में सर्वे कराने में असफल रहे थे और डीडीए सरकारी जमीन को अपने कब्जे में नहीं ले पा रही थी।