सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद सरकार और कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए कानून मंत्री अश्वनी कुमार की कुर्सी बचाना बेहद मुश्किल हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार और विपक्ष के तीखे तेवरों को देखते हुए सिर्फ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल हरेन रावल की विदाई से ही सरकार का संकट खत्म नहीं होने वाला।
लिहाजा, सरकार के सामने कानून मंत्री की बलि देकर नैतिकता का तकाजा और अपना चेहरा बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद सरकारी खेमे में हड़कंप मच गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठकों का दौर शुरू हो गया।
प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद अश्वनी कुमार ने कहा कि उन पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है। दूसरी तरफ सरकार और कांग्रेस बचाव में दलील दे रही है कि यह कोर्ट का फैसला नहीं है, बल्कि उसने अभी टिप्पणी की है।
कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि अभी इस संबंध में अंतिम आदेश आना बाकी है और एक बार जब वह सामने आएगा, तब सही निर्णय किया जा सकता है। कांग्रेस ऐसी पार्टी नहीं है कि जब कोर्ट का फैसला पक्ष में आता है तब प्रशंसा करे और जब विरोध में आए तब उसका विरोध करे। पार्टी अदालत का सम्मान करती है।
कांग्रेस के एक अन्य नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने खुलकर अश्वनी कुमार का बचाव किया। उन्होंने कहा कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है कि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होने वाले कोई भी दस्तावेज की जांच कानून मंत्रालय करता है।
सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई 8 मई को है। उससे पहले सीबीआई को कोर्ट में इस सिलसिले में जवाब देना है। सरकार कई विकल्पों पर विचार कर रही है।
डैमेज कंट्रोल की कसरत के तहत एक उपाय यह माना जा रहा है कि कोर्ट कोई कड़ा फैसला दे, उससे पहले ही कानून मंत्री का इस्तीफा लेकर नैतिकता की मिसाल पेश की जाए। मगर कानून मंत्री के इस्तीफे के बाद तलवार सीधे प्रधानमंत्री पर भी आने का डर सरकार और कांग्रेस को है।
लिहाजा, सियासी जमीन पक्की करने के बाद ही अगला कदम उठाने की रणनीति बना रही है। सरकार इस पूरे मामले में राजनीतिक समर्थन जुटाने की कोशिश में है। इसके लिए सपा और बसपा को साधने की कोशिश की जा रही है।