अखिलेश सरकार ने 2007 के बम धमाके के दो आरोपियों को निर्दोष बताते हुए उन दोनों आरोपियों को रिहा करने के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने आरोपियों को रिहा करने की याचिका को ख़ारिज कर दिया है।
लखनऊ, फैजाबाद और बनारस की कचहरी में वर्ष 2007 में हुए सीरियल ब्लास्ट मामले के दो आरोपियों के खिलाफ यहां चल रहे अपराधिक मामले को वापस लेने संबंधी अर्जी विशेष अदालत ने शुक्रवार को खारिज कर दी।
उक्त मामले के विशेष लोक अभियोजक अपर जिला शासकीय अधिवक्ता ने शासन के निर्देश का हवाला देते हुए आरोपियों पर से मुकदमा वापस लिए जाने का अनुरोध करते हुए विशेष अदालत में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था।
अदालत ने अर्जी खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त अभियुक्तों के विरुद्ध चल रहा वाद वापस लेने पर कौन सा जनहित होगा, यह न्यायालय की समझ से परे है।
मालूम हो कि प्रदेश सरकार ने कचहरी सीरियल ब्लास्ट के आरोपियों के मुकदमे वापसी के लिए प्रमुख सचिव न्याय की ओर से जिलाधिकारी को पत्र भेजा था। इसी के आधार पर बीते 3 मई को मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत में विशेष लोक अभियोजक अपर जिला शासकीय अधिवक्ता विनोद कुमार द्विवेदी ने मुकदमा वापसी के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। इसमें कहा गया था कि क्षेत्र की सुरक्षा, व्यापक जनमानस व सांप्रदायिक सौहार्द्र को दृष्टिगत रखते हुए आरोपियों पर से मुकदमा वापस लिया जाना न्यायोचित होगा।
शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई कर रही विशेष अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एससी एसटी एक्ट) कल्पना मिश्रा ने अभियोजन पक्ष की अर्जी खारिज करते हुए अपने आदेश में लिखा कि यह मामला आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित है तथा अभियुक्तों के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य होने के उपरांत न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया है।
अदालत ने कहा कि आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने वाले अभियुक्तों के विरुद्ध चल रहा वाद वापस लेने पर कौन सा जनहित होगा, यह न्यायालय की समझ से परे है। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने वाले व्यक्ति किसी जाति संप्रदाय से जुडे़ नहीं होते, उनका एक मात्र मकसद जनमानस में आतंक पैदा करना होता है।
अदालत ने कहा कि इस मामले में समस्त अभियोजन साक्ष्य प्रस्तुत किए जा चुके हैं, अंतिम साक्षी के तौर पर विवेचक की साक्ष्य लगभग समाप्ति की ओर है जिसमें 83 पेज बयान लिखे जा चुके हैं। न्यायधीश ने आदेश में लिखा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है, मात्र राज्य सरकार के दिए गए आदेश के अनुक्रम में मुकदमा वापसी का प्रार्थना पत्र दिया गया है।
इसमें कोई तथ्य वर्णित नहीं है जिससे जनहित, न्याय हित, सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द्र व न्याय व्यवस्था कायम करने के उद्देश्य से वाद को वापस लिया जा सके। यह कहते हुए अदालत ने अभियोजन पक्ष की मुकदमा वापसी की अर्जी खारिज कर दी।
मालूम हो कि मुकदमा वापसी के विरोध में अधिवक्ता एवं वादकारी कल्याण समिति के अध्यक्ष शिवकुमार शुक्ला की ओर से जोरदार पक्ष रखा गया जिसका हवाला भी अदालत ने अपने आदेश में दिया है।
बताते चलें कि लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी कचहरी में हुए सीरियल बम विस्फोट के आरोप में एटीएस व एसटीएफ ने 22 दिसंबर 2007 की सुबह खालिद मुजाहिद व तारिक कासमी को बाराबंकी रेलवे स्टेशन के नजदीक विश्वनाथ होटल के पास से गिरफ्तार किया था। और इनके कब्जे से जिलेटिन की नौ राड, तीन स्टील बजर और डेटोनेटर बरामद हुए थे। बाराबंकी कोतवाली में इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था।
सीओ चिरंजीवी नाथ सिन्हा और राजेश कुमार श्रीवास्तव ने तीन माह में ही न्यायालय में आरोप पत्र पेश कर दिया था। तफ्तीश में तारिक कासमी को उत्तर प्रदेश का हूजी चीफ और खालिद मुजाहिद को यूपी के फौजी दस्ते का कमांडर बताया गया है। इन पर चल रहे मुकदमें की वापसी के लिए अक्टूबर 2012 में शासन ने जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी थी। इसी के तहत अब मुकदमा वापसी की कार्रवाई अदालती अंजाम तक पहुंची थी।