गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय बोर्ड में वापसी के बाद लोकसभा चुनावों में भाजपा की राह आसान होगी या कठिन, ये अंदाजा लगाना मुश्किल है।
हालांकि मोदी की तरक्की के बाद राष्ट्रीय स्वयं संघ ने जिस प्रकार ‘भव्य राम मंदिर’ की तान छेड़ दी है और जेडीयू ने सेक्यूलर प्रधानमंत्री का नारा बुलंद किया है, उससे ये तो जाहिर है कि आने वाले दिनों में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की चुनौती भी बढ़ने वाली है और नरेंद्र मोदी की भी।
जायजा लेते हैं ऐसी चुनौतियों का, जिनका सामना भाजपा को नरेंद्र मोदी को संसदीय बोर्ड में शामिल करने के बाद करना पड़ सकता है-
चुनौती 1: राजग का विस्तार
वर्तमान लोकसभा में भाजपा का 115 सीटों पर कब्जा है। सत्ता में आने के लिए आगामी चुनावों में पार्टी को ये आंकड़ा 200 के करीब पहुंचाना होगा।
हालांकि ये आंकड़ा बहुमत से बहुत कम है। इस अंतर को पाटने के लिए ही भाजपा को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
भाजपा की सीटों का आंकड़ा यदि 200 के करीब नहीं पहुंचता है तो उसे राजग में अन्य दलों को शामिल करने की जरूरत पड़ सकती है।
ऐसे में भाजपा के समक्ष जयललिता की अन्नाद्रमुक, नवीन पटनायक का बीजू जनता दल, चंद्र बाबू नायडू की तेलुगूदेशम पार्टी और ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस विकल्प हो सकते हैं।
लेकिन नरेंद्र मोदी के मुद्दे पर इन दलों के मौजूदा रुख से ऐसी संभावना कम ही दिखती है।
चुनौती 2: घटक दलों की नाराजगी
तीन महीने पहले अध्यक्ष चुने गए राजनाथ सिंह की 74 सदस्यीय टीम में मोदी के कई करीबियों को अहम जिम्मेदारी दी गई है।
संभवतः राजनाथ ने ये संकेत देने की कोशिश की है कि अगले लोकसभा चुनाव में मोदी अहम भूमिका में होंगे।
हालांकि राजनाथ की ये कवायद लोकसभा चुनावों में उन्हें मुश्किल में भी डाल सकती है।
मोदी के संसदीय बोर्ड में शामिल होते ही रविवार को जनता दल (यूनाइटेड) ने सेक्यूलर छवि के व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने की अपनी पुरानी मांग एक बार फिर दोहरा दी है।
पार्टी के बिहार इकाई के प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है, ‘प्रधानमंत्री पद के लिए ऐसा ही व्यक्ति स्वीकार होगा, जिसकी छवि सेक्यूलर हो और जो सबको साथ लेकर चल सके।’
मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर राजग के अन्य घटक दल पहले भी असहमति जता चुके हैं। ऐसे में ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि राजनाथ सिंह मोदी के मुद्दे पर अपने मौजूदा सहयोगियों को कैसे जोड़ कर रख पाते हैं।
चुनौती 3: उत्तर प्रदेश में भाजपा
उत्तर प्रदेश में खस्ताहाल भाजपा नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी चुनौती है।
लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा को सत्ता में आने के लिए यहां से सबसे ज्यादा सीटें हासिल करनी होगी। फिलहाल पार्टी के खाते में यहां महज 10 सीटें हैं।
राजनाथ ने अपनी नई टीम में वरुण गांधी को महासचिव का पद देकर पुराने नेताओं की नारजगी भी मोल ले ली है। विनय कटियार ने वरुण की नियुक्ति पर कहा कि उन्हें गांधी नाम का फायदा मिला है।
भाजपा गुटबाजी और धड़ेबाजी की सर्वाधिक शिकार यूपी में ही है और नरेंद्र मोदी ने अब तक इस राज्य में अपनी पैठ का कोई प्रमाण नहीं दिया है।
लोकसभा चुनावों में यूपी में भाजपा की कामयाबी पर ही राजनाथ और मोदी की कामयाबी का दारोमदार टिका हुआ है।
चुनौती 4: आगामी विधानसभा चुनाव
2013 के अंत तक 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ये राज्य हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ हैं।
इनमें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की ही सरकार है। हालांकि मोदी को चुनाव समिति में शामिल करने के बाद भी पार्टी इन विधानसभा चुनावों में उन्हें प्रचार की कमान नहीं सौंपेगी।
अमर उजाला संवाददाता हरिश लखेड़ा के मुताबिक, ‘छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा नरेंद्र मोदी को सामने नहीं लाएगी। भाजपा 2014 लोकसभा चुनावों में ही उनका इस्तेमाल करेगी।’
गुजरात के बाहर नरेंद्र मोदी चुनावों में भाजपा को कितनी कामयाबी दिला पाएंगे, इस बात के प्रमाण मिलना भी अभी शेष है।
चुनौती 5: संघ का एजेंडा
मोदी रविवार को भाजपा के संसदीय बोर्ड में शामिल किए गए और इसी दिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अहमदाबाद में अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने की मांग कर डाली।
संघ का ये एजेंडा कई मायने में महत्वपूर्ण है। नई टीम में नरेंद्र मोदी समेत अमित शाह, वरुण गांधी और उमा भारती को शामिल कर भाजपा ने एक बार फिर ये संकेत दिए हैं कि पार्टी हिंदुत्व के एजेंडे की ओर लौट सकती है।
ऐसे में संघ का ये एजेंडा आगामी चुनावों में एक बार फिर भाजपा का चुनावी एजेंडा बन सकता है। लेकिन 2004 से ही राम मंदिर के मुद्दे को हाशिए पर डाल चुकी भाजपा अगर एक बार उस और लौटती है तो उसे फायदे के बजाय नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
संघ के एजेंडे पर भाजपा का क्या रुख होगा ये देखना महत्वपूर्ण होगा।