खबर सुनकर उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बेटी अंकिता (16) व बेटा शुभांशु (12) का भी रो-रोकर बुरा हाल है।
वे सुबकते हुए कहते हैं कि पापा एक दोस्त की तरह थे। उन्होंने कभी डांटा भी नहीं। जब भी छुट्टी पर आते, घंटों साथ खेलते, ढेरों बातें करते।
सेना से रिटायर पिता कैप्टन टीआर पाल रुंधे गले से कहते हैं कि सैनिकों का दिल बहुत मजबूत होता है, देश के लिए अपना लाडला दिया है। तकलीफ तो है, बस ईश्वर उसे सहन करने की शक्ति दे दे।
मां लक्ष्मी तो रोते-रोते बेहोश हो जाती हैं। होश में आने पर फिर भोला-भोला चिल्लाने लगती हैं।
बचपन से ही आर्मी में जाने का था सपना
वर्ष 1968 में प्रतापगढ़ में जन्मे शिव कुमार पाल ने बचपन से ही भारतीय सेना में जाने और देश की सेवा करने का सपना देखा था। पिता की ट्रांसफरेबल जॉब की वजह से उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा कई जगहों से हुई।
सिकंदराबाद, रुड़की और शाहजहांपुर से इंटर व पॉलीटेक्निक करने वाले शहीद शिव कुमार पाल ने इलाहाबाद से ग्रेजुएशन किया। रक्षा लेखा में असिस्टेंट ऑडिटर भाई देवेंद्र पाल ने बताया कि लखनऊ में उसने कुछ समय के लिए शिक्षा प्राप्त की है।
इस दौरान पिता ने उसे सेना की बजाय किसी अन्य क्षेत्र में कॅरिअर बनाने की भी सलाह दी लेकिन वह नहीं माना। रेलवे में सीनियर सेक्शन अफसर और शहीद के बड़े भाई अशोक कुमार पाल ने रुंधे गले से बताया कि पिताजी के मना करने के बावजूद शिव ने 1988 में सेना की पायनियर रेजिमेंट ज्वाइन कर ली।
बाद में उसकी सेना की 6 महार रेजिमेंट में तैनाती हो गई। देश सेवा की लगन व जोश की वजह से पिछले साल अक्टूबर में सूडान में संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति अभियान में उसका चयन हुआ था।
यह मिशन छह महीने का था। अगले महीने 10 मई को वह वापस आने वाला था। हम सब उसकी वापसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उसके आने की खुशी में कई कार्यक्रम तय कर रखे थे लेकिन उसके शहीद होने की खबर ने हमें हिला कर रख दिया।
पूरा परिवार आर्मी की सेवा में है तत्पर
शहीद नायक सूबेदार के बड़े भाई अशोक ने बताया कि उनके परिवार के कई लोग आर्मी में रहकर देश सेवा कर रहे हैं। खुद उनके पिता आर्मी एजुकेशन से रिटायर हुए हैं।
पिता के अलावा घर में छोटा भाई प्रदीप कुमार पाल एएमसी से रिटायर हो चुका है जबकि एक अन्य भाई रक्षा लेखा विभाग में असिस्टेंट ऑडीटर पद पर कार्यरत है। परिवार में चाचा के लड़के भी सेना में ही हैं।
पिता भी जा चुके हैं शांति मिशन में
शहीद के पिता व रिटायर्ड कैप्टन टीआर पाल भी 1962 में कांगों में यूएन शांति मिशन में जा चुके हैं। इसके बाद चीन से युद्ध होने पर वे भारत लौट आए थे।
सेना में अदम्य साहस के लिए उनको विशिष्ट सेवा मेडल, सैन्य सेवा मेडल और नागालैंड मेडल से सम्मानित किया जा चुका है।
रिटायरमेंट के बाद लखनऊ में बसने का था इरादा
भाई देवेंद्र कुमार पाल ने बताया कि शिव ने शहर के रतनखंड में प्लॉट खरीद रखा था। मई में लौटने के बाद उसने वहां मकान बनवाने की बात कही थी।
उन्होंने बताया कि हालांकि शहीद की पत्नी दिल्ली में कार्यरत हैं और उनका परिवार दिल्ली में रहता है लेकिन शिव रिटायरमेंट के बाद लखनऊ में ही रहना चाहता था।
खाने का ही नहीं, बनाने का भी था शौक
शिव कुमार की बहन इंदु बाला कहती हैं कि भइया को खाने का तो शौक था ही, खाना बनाने में भी वे महारथी थे। जब भी छुट्टी पर आते तो खाना खुद ही बनाते। भले ही एक दिन के लिए आएं लेकिन किचन की पूरी जिम्मेदारी संभालते थे।
वह कहती हैं कि वे बहुत भोले थे और इसलिए उनका प्यार का नाम भी भोला था। वह रोते हुए बताती हैं कि चार भाई, पांच बहनों और चचेरे-ममेरे भाइयों के बड़े परिवार में वह सभी का ख्याल रखते थे।
संयुक्त राष्ट्र संघ का शांति अभियान
विश्व शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वैश्विक सहयोग ही शांति अभियान है। इसके तहत 110 देशों की सेनाएं एक ही छत के नीचे आकर विश्व सुरक्षा और शांति के उद्देश्य से काम करती हैं।
वर्तमान में भारत यूएन को सहयोग करने वाले देशों में तीसरे स्थान पर है। यूएन के इस अभियान में भारत पिछले 57 सालों से 43 मिशन में सहयोग कर चुका है। शांति अभियान में छह महीने के लिए सैनिकों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है।