नई दिल्ली। राजधानी में कांग्रेस बैकफुट पर है। मुद्दा चाहे बिजली-पानी का हो या राजधानी का शर्मसार करने वाली रेप की घटनाओं का, कांग्रेसी नेताओं को दिल्लीवासियों का गुस्सा झेलना पड़ रहा है। चुनावी साल ने पार्टी की बेचैनी बढ़ा दी है। पार्टी की दिक्कत यह है कि हमदर्दी की उसकी कोशिश का भी मजाक उड़ाया जा रहा है। इन सब मुद्दों पर कांग्रेस व दिल्ली सरकार की इकलौती रटी-रटाई दलील पुलिस के अधिकार पर है। वहीं, आम आदमी पार्टी और भाजपा इन मुद्दों को फायदा उठाकर सरकार को घेर रही है।
16 दिसंबर की नृसंश वारदात के बाद से ही पार्टी के हाथ से हालात निकलते दिख रहे हैं। इस घटना के बाद सरकार के साथ ही पार्टी संगठन जनता के साथ खड़ा दिखने की कोशिश कर रहा था। इंडिया गेट पर सांसद संदीप दीक्षित व जंतर-मंतर पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित हमदर्दी दिखाने भी पहुंचे, लेकिन आम लोगों के विरोध के बीच इन्हें वापस लौटना पड़ा।
वसंत विहार से मिले जख्म भरे भी नहीं थे, गांधी नगर की वारदात से एक बार फिर दिल्ली तिलमिला गई। कांग्रेस की समस्या यह है कि आम आदमी पार्टी व भाजपा आम लोगों के इस तिलमिलाहट के साथ-साथ खड़ी हैं। दिल्ली को हिलाकर रख देने वाली इस वारदात के बाद खड़े हुए आंदोलन में दोनों की कोशिश एक-दूसरे से बढ़कर हिस्सेदार बनने की है। वहीं सत्ता पक्ष की हमदर्द बनने की कोशिश को एक बार फिर आम लोगों ने खारिज कर दिया है।
इसके अलावा बिजली-पानी की बढ़ती कीमतों पर आम आदमी पार्टी व भाजपा ने सरकार पर दबाव बनाए रखा है। बार-बार सड़क पर उतरकर दोनों पार्टियां इस मुद्दे पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, चुनावी साल में आम जनता पर सीधा असर डालने वाले मुद्दों पर चुप्पी कांग्रेस को भारी पड़ सकती है। उनका कहना है कि लगातार विरोध प्रदर्शनों के बीच सरकार अपनी उपलब्धियां भी जनता के बीच नहीं रख पा रही है।