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चीन का इरादा है क्या ? क्यों उकसा रहा है भारत को

images (2)कभी सीमा पर घुसपैठ तो कभी सैनिकों का जमावड़ा। कभी साइबर अटैक तो कभी भड़काऊ बयानबाजी। कई सालों से मौके बेमौके चीन इस तरह की हरकतों से भारत को उकसाता रहा है। आखिर इसकी वजह क्या है?

भारत सरकार भले ही यह बताती रहे कि 2003 में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की यात्रा के बाद द्विपक्षीय संबंध बेहतर और मधुर हुए हैं लेकिन चीन की कार्रवाइयाँ कुछ और ही बयां करती हैं। सवाल उठता है कि आखिर चीन चाहता क्या है?

तिब्बत की संप्रभुता
तिब्बत को भारतीय समर्थन और उसकी सहानुभति चीन को फूटी आंख नहीं भाती।

निर्वासित दलाई लामा को शरण देने के बाद से चीन तिब्बत के मसले पर भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन माने बैठा है। चीन चाहता है कि भारत तिब्बत पर चीन की संप्रभुता को स्वीकार करे और चीन द्वारा चुने गए धार्मिक नेतृत्व को तिब्बत स्वीकार करे।

जाहिर तौर पर भारत ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा और विश्लेषक मानते हैं कि चीन तब तक तिब्बत में भारतीय उपस्थिति का बदला लेह और लद्दाख में अशांति का माहौल पैदा करके ले रहा है।

सामरिक मामलों के जानकार बी रमन का कहना है कि चीन अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे को तब तक हवा देता रहेगा जब तक तिब्बत में भारतीय हस्तक्षप की सभी संभावनाएं समाप्त नहीं हो जाती।

दक्षिण चीन सागर
दक्षिण चीन सागर चीन की दुखती रग है। चीन यहां दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों खासकर भारत की उपस्थिति से बेहद खफा है।

चीन वियतनाम पर अपना दबदबा चाहता है और वो नहीं चाहता कि भारत इस सागर में तेल की खोज के वियतनाम के प्रस्ताव का समर्थन करे।

चीन की उम्मीदों के उलट 2000 के बाद से ऐसा हो रहा है और इस कवायद को अमेरिकी सहयोग चीन के जले पर नमक है। दरअसल इस सागर में तेल और गैस के काफ़ी बड़े भंडार होने की संभावना है और ये एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है।

चीन निगरानी करने वाले जहाजों के नाम पर सागर में मौजूद दूसरे देशों को परेशान करता रहा है।

साल 2008 में चीन ने दक्षिण चीन सागर में निगरानी करने वाले गश्ती जहाजों की संख्या तिगुनी कर दी। हालांकि ये जहाज निगरानी के अलावा जासूसी और मुठभेड़ जैसे कई काम कर रहे हैं।

अरुणाचल प्रदेश
चीन को अरुणाचल प्रदेश में भारत की उपस्थिति भी नहीं पचती।

चीन नहीं चाहता कि किसी भी नक्शे पर अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा दिखाया जाए।

यही नहीं चीन अरुणाचल के अलावा जम्मू कश्मीर में भी भारत की उपस्थिति को कानूनी मान्यता नहीं देता।

पिछले साल जब भारत ने अरुणाचल प्रदेश में 50 हजार से एक लाख सैनिकों की तैनाती करने का फैसला किया तो चीन का पारा गर्म हो गया। उस समय चीन के सैन्य अधिकारियों ने इस तैनाती पर विरोध किया था लेकिन ऐसा दिखता है कि उसका जवाब ताजा घुसपैठ से दिख रहा है।

मेकमोहन रेखा का विवाद
1962 के युद्ध और समय समय पर होने वाले विवादों के बीच भारत और चीन सीमा यानी मेकमोहन रेखा का विवाद आज तक अनसुलझा है।

दरअसल चीन 1914 में बन बनी मेकमोहन रेखा को नहीं मानता। चीन का कहना है कि गुलाम भारत और तिब्बत के बीच हुए शिमला समझौते के तहत बनी ये सीमा उसे स्वीकार नहीं। वो अपनी ढाई हजार पुरानी सीमा रेखा को सही मानता है।

चीन का दावा है कि भारत और चीन को अलग करने वाली सीमा मात्र 2000 किलोमीटर है जबकि भारत और दुनिया की नजर में यह सीमा 4000 किलोमीटर से भी लंबी है।

1950 के दशक में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन ने 1962 में सीमा विवाद के बहाने भारत पर हमला किया. अक्साई चीन के कई हिस्सों पर कब्जा लिया लेकिन चीन शांत नहीं बैठा। जानकार मानते हैं कि अभी भी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर करीब 500 स्थानों पर दोनों देशों के बीच मतभेद हैं।

NCR Khabar News Desk

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