नई दिल्ली । महज झलक दिखाकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आधी बाजी जीत ली। दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई विशाल रैली से नीतीश गरजे तो विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर केंद्र ने भी नरम रुख दिखा दिया। बिहार के बहाने नीतीश ने दूसरे पिछड़े राज्यों का नेतृत्व भी खुद ही संभाल लिया। साथ ही इशारों-इशारों में दिल्ली और कांग्रेस सरकार को बिहार की ताकत का भी अहसास करा गए। दिल्ली के विधानसभा चुनाव से पहले उनकी हुंकार खासी अहम मानी जा रही है। उन्होंने कहा कि अगर बिहार के लोग एकजुट हो गए तो दिल्ली उनकी मुट्ठी में होगी।
रविवार को रामलीला मैदान एक अलग तरह की रैली का गवाह बना। 70-80 हजार की भीड़ में नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाने के छिटपुट नारे जरूर लगे, लेकिन मुख्य नारा था बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का। सधे हुए राजनीतिज्ञ नीतीश कुमार बोलने खड़े हुए तो बारीकी से राजनीतिक बढ़त बनाने से भी नहीं चूके। प्रचीन गौरव की याद दिलाते हुए नीतीश ने बिहारी अस्मिता की बात की तो दिल्ली सरकार को भी आगाह कर दिया कि देश की राजधानी में उनकी ताकत को पहचानें और उन्हें अच्छी जिंदगी जीने का हक दें। वरना यह न भूलें कि अगर वह इकट्ठे हो गए तो दिल्ली उनके हाथ में होगी।
गौरतलब है कि नवंबर में दिल्ली विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार के पिछड़ेपन और संसाधन की कमी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसके बावजूद पिछले सात साल में राज्य बढ़ा है। विकास दर अच्छी है और इसका गुणगान प्रधानमंत्री व वित्तमंत्री भी कर चुके हैं, लेकिन बिहार इतने से संतुष्ट नहीं है। बिहार में शक्ति है, अब उसे संसाधन मुहैया कराना केंद्र का काम है। बदले में बिहार देश के विकास की राह तैयार करेगा। लिहाजा कोई इसे भीख न समझे, यह बिहार का हक है।
थोड़ा आक्रामक होते हुए उन्होंने कहा, ‘केंद्र की ओर से बिहार की मांगों के प्रति थोड़ा अच्छा रुख दिखा है, लेकिन बात इतने से नहीं बनेगी। अगर हक पूरा नहीं हुआ तो फिर पूरी लड़ाई बाकी है।’ रैली खत्म होने के बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने मांगों के प्रति नरम रुख जताकर नीतीश की ओर कांग्रेस के बढ़ते कदम का संकेत दे दिया। माना जा रहा है कि सोमवार को जब नीतीश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री पी. चिदंबरम से मिलेंगे तो बात कुछ आगे बढ़ेगी।
पिछड़े राज्यों का नेतृत्व भी संभाला
नीतीश बिहार की मांगों पर ही नहीं रुके, बल्कि उन राज्यों का नेतृत्व भी अपने हाथों में ले लिया जो विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रामलीला मैदान की यह लड़ाई सभी पिछड़े राज्यों के लिए है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्ष में उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड जैसे कई दूसरे राज्यों ने भी इसके लिए दबाव बढ़ाया है। नीतीश ने कांग्रेस सरकार के साथ-साथ परोक्ष रूप से सहयोगी भाजपा को आगाह कर जदयू की राजनीतिक रणनीति का भी अहसास करा दिया है। नीतीश से पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने भी बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा लेने की बात कही। बिहार प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने इस बाबत एक संकल्प को ध्वनिमत से पारित कराया।
भीख नहीं, अधिकार के लिए उमड़ा जनसैलाब
नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। अवर्णनीय और अतुलनीय। सिर्फ भीड़ के लिहाज से रामलीला मैदान में रविवार को आयोजित अधिकार रैली की बात करें तो यही कहना सही होगा। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर जदयू द्वारा आयोजित अधिकार रैली में शामिल होने आए लोग मंच पर नेताओं के आने से पहले मैदान में अपना स्थान सुरक्षित करना चाहते थे।
रामलीला मैदान में घुसने के लिए करीब एक किलोमीटर लंबी कतार में खड़े लोग। हाथ में पार्टी का झंडा और मुंह पर ‘भीख नहीं अधिकार चाहिए’ के बोल। कोई समस्तीपुर से आया तो कोई किशनगंज, छपरा, पटना से और कोई दिल्ली के सोनिया विहार, बदरपुर, बुराड़ी से..। क्यों आए हैं? पूछे जाने पर कहते हैं कि बस यह बताने कि केंद्र की सरकार ‘बिहारियों को बुद्धू न समझे।’ सुबह 11 बजे आयोजित रैली में हिस्सा लेने के लिए सुबह से ही रामलीला मैदान में चहल-पहल शुरू हो गई थी। ट्रेन से आए लोगों ने सुबह से ही मैदान में डेरा डाल लिया तो बाहर से सड़क मार्ग से आने वालों का सिलसिला सुबह नौ बजे के बाद शुरू हुआ। रिक्शा, रेहड़ी, तिपहिया, टेंपो, बस के अलावा पैदल चलकर आने वालों का जो तांता लगना शुरू हुआ, वह दोपहर पौने दो बजे समाप्त हुई रैली तक चलता रहा।
बच्चे, बुजुर्ग और सभ्रांत परिवारों की महिलाओं की भी रामलीला मैदान में कमी नहीं थी। युवाओं का तो कहना ही क्या। बहुतों की जिज्ञासा यह थी कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने से उनका भला किस प्रकार होगा, यह नेताओं के मुंह से सुनें। लोगों का हुजूम देख सुबह 11 बजे के बाद से पुलिस को वाहनों के लिए मार्ग बंद करने पड़े। लोगों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। रैली का साक्षी बनने के लिए जुटे लोग एक-दूसरे से टकराने पर झगड़ते नहीं, बल्कि सहारा देते नजर आए। मंच पर बैठे नेताओं का ठीक तरह से दीदार हो सके, इसलिए रामलीला मैदान में पेड़ पर भी जा बैठे। बीच-बीच में कहीं ढोलक की थाप पर लोग अधिकार की बात करते भी दिखाई दिए।
कुछ बोले, कुछ बिन बोले साधा निशाना
नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। तीर चलाए बिना निशाना साधना शायद इसी को कहते हैं। रविवार को रामलीला मैदान में सबकी नजर लगी थी कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कांग्रेस और सहयोगी भाजपा पर भी निशाना साधेंगे। बोले तो वह बहुत कुछ, लेकिन हर उस मुद्दे को छोड़ गए, जिससे कांग्रेस और भाजपा रोजाना दो-चार हो रही है। न तो भ्रष्टाचार और महंगाई की बात हुई और न ही प्रधानमंत्री पद या धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव की। संकेत स्पष्ट है कि भविष्य की राजनीति का पत्ता दबाकर नीतीश शायद एक-एक कदम आगे बढ़ना चाहते हैं।
पिछले कुछ महीनों में नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की अटकलों को लेकर जहां भाजपा और जदयू में तनातनी रही है, वहीं इन्हीं दिनों में कांग्रेस की ओर से भी अलग -अलग तरह से पासा फेंका जाता रहा है। पिछड़े राज्यों को वित्तीय आवंटन की शर्तो में बदलाव का संकेत केंद्र की ओर से ऐसा ही पासा था। लेकिन नीतीश सधे राजनीतिज्ञ की तरह कांग्रेस और भाजपा दोनों को असमंजस में छोड़ गए। अपने 45 मिनट के भाषण में नीतीश ने बिहार के साथ सौतेले व्यवहार की बात तो कही, लेकिन भ्रष्टाचार, महंगाई, सुरक्षा जैसे किसी मुद्दे को छुआ तक नहीं। कांग्रेस सरकार में नीतिगत अनिर्णय पर भी कोई बात नहीं हुई। कांग्रेस के लिए यह राहत का सवाल है। खास तौर पर तब जबकि एक दिन पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीधे प्रधानमंत्री पर सवाल खड़ा किया हो।
भाजपा के साथ जदयू का पुराना रिश्ता है। मोदी की आहट से जरूर पार्टी में बेचैनी हो, लेकिन अभी भी जदयू के नेताओं का मानना है कि गठबंधन में टूट राजनीतिक लिहाज से किसी के लिए अच्छा नहीं है। लेकिन इससे भी इन्कार नहीं है कि जरूरत हुई तो टूट हो भी सकती है। माना जा रहा था कि दिल्ली की विशाल रैली में नीतीश भी खुद को विकास पुरुष की होड़ में शामिल कर भाजपा को संकेत देंगे। लेकिन उन्होंने सिर्फ इतना कहकर भाजपा और कांग्रेस दोनों को संकेत दे दिया कि ‘विशेष राज्य का दर्जा तो देना ही पड़ेगा, अभी दें या 2014 चुनाव के बाद।’ जो भी सरकार बनाएगा, उसे हमारी जरूरत होगी।
पिछड़े राज्यों की परिभाषा तय करने के लिए गठित होगी समिति
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्र सरकार ने हाल के दिनों में बिहार को पिछड़े राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर अपने रुख में बदलाव जरूर दिखाया है, लेकिन इस बारे में फैसला होने में अभी वक्त है। फिलहाल सरकार के भीतर पिछड़े राज्यों की नई परिभाषा तय करने पर एक समिति के गठन को लेकर विचार-विमर्श हो रहा है। जानकारों का कहना है कि सरकार चाहेगी कि अगले आम चुनाव से पहले पिछड़े राज्यों की परिभाषा तय करने पर अंतिम फैसला हो जाए।
सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आम बजट 2013-14 में पिछडे़ राज्यों की परिभाषा बदलने की जरूरत बताकर सरकार की मंशा साफ कर दी थी। लेकिन, इसे आनन-फानन में अमली जामा नहीं पहनाया जा सकता। इस मुद्दे पर पहले एक समिति गठित होगी। समिति के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के नामों को लेकर विचार-विमर्श हो रहा है। इस बारे में अगले कुछ हफ्तों के भीतर अंतिम फैसला हो जाएगा। समिति को छह महीने के भीतर रिपोर्ट देने को कहा जा सकता है। चूंकि यह मुद्दा काफी बड़ा है इसलिए समिति की रिपोर्ट पर कैबिनेट के स्तर पर भी विचार-विमर्श होगा। जाहिर है कि इस बारे में अंतिम फैसला वित्त वर्ष के अंत तक ही हो पाएगा।
अभी 12 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला है। मोटे तौर पर पहाड़ी क्षेत्र वाले, अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े, बेहद खराब बजटीय स्थिति, आदिवासी व जनजातीय समूहों की ज्यादा आबादी वाले राज्यों को यह दर्जा मिलता है। लेकिन, सरकार अब इस परिभाषा को बदलना चाहती है। वित्त मंत्री ने यह कहा भी है कि नए माहौल में आर्थिक पिछड़ेपन, सामाजिक जैसे मुद्दों के आधार पर पिछड़े राज्य का निर्धारण होना चाहिए। परिभाषा बदलने से बिहार के अलावा राजस्थान, गोवा, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ भी पिछड़े राज्य का दर्जा पा सकते हैं।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव अभी तक संप्रग ठुकराता रहा है। प्रधानमंत्री की तरफ से पिछड़ेपन की परिभाषा तय करने पर गठित अंतर-मंत्रालयी समूह ने बिहार को यह दर्जा देने के प्रस्ताव को मानने से मना कर दिया था। समूह ने कहा था कि राज्य मौजूदा पिछड़ेपन को अपने भौगोलिक व मानव संसाधन संपत्ति के जरिये दूर कर सकता है।
पिछड़े राज्य का दर्जा मिलने के फायदे
1. उद्योग जगत को मिलती है उत्पाद शुल्क व अन्य केंद्रीय शुल्कों में छूट, बढ़ेगा निवेश
2. केंद्र से मिलने वाली कुल वित्तीय मदद का 90 फीसद बतौर अनुदान मिलता है, जबकि 10 फीसद कर्ज के रूप में [सामान्य राज्यों को 30 फीसद अनुदान व 70 फीसद कर्ज]
3. विशेष परिस्थितियों व योजनाओं के लिए ब्याज मुक्त कर्ज देता है केंद्र
4. केंद्रीय मदद के इस्तेमाल को लेकर नहीं लगाए जाएंगे सख्त नियम
5. बाहर से आर्थिक मदद लेने या अन्य एजेंसियों से मदद लेने के नियम होंगे उदार।
दिखावा है नीतीश की रैली: लालू
रेवाड़ी। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार के विकास के झूठे दावे पेश कर रहे हैं। दिल्ली में आयोजित उनकी अधिकार रैली सिर्फ दिखावा है। उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी प्रहार करते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री बनने के लिए छटपटा रहे हैं।
हरियाणा के रेवाड़ी स्थित धारूहेड़ा में पत्रकारों से बातचीत में लालू ने कहा किबिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए नीतीश दिल्ली में रैली करके अपनी साख बचाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यह ढाेंग से अधिक कुछ नहीं है।
उन्होंने कहा कि वह खुद बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में उठा चुके हैं, लेकिन इस मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाई। बिहार की विकास दर को लेकर बेशक कुछ भी बयानबाजी की जा रही हो, लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है।
अधिकार रैली की झलकियां
नीतीश व शरद को दिखाए काले झंडे
रैली में जहां भारी संख्या में समर्थक जुटे, वहीं आलोचकों की कमी भी नहीं थी। यह बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के आते ही साबित हो गई। अरविंद सिंह नामक व्यक्ति के नेतृत्व में चार लोगों ने नीतीश कुमार व शरद यादव को प्रवेश गेट पर ही काले झंडे दिखाए।
कड़ी सुरक्षा के बीच पुलिस ने दोनों नेताओं को मंच तक पहुंचा दिया, लेकिन नीतीश के समर्थकों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने अरविंद की जमकर पिटाई की। बाद में पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया। काले झंडे दिखाने के पीछे वजह उसने यह बताई कि बिहार के कई इलाके अब भी विकास से अछूते हैं।
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ढोल-नगाड़ों की थाप पर झूमे लोग
अधिकार रैली में शामिल होने दिल्ली पहुंचे लोग जब नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली व आनंद विहार टर्मिनल रेलवे स्टेशन पहुंचे तो लगा जैसे पूरा स्टेशन किसी उत्सव के रंग में रंग गया हो। ट्रेन के अंदर से ही ढोल-नगाड़ों व क्षेत्रीय गानों की आवाज आने लगी थी। ट्रेन के प्लेटफार्म पर रुकते ही पूरा प्लेटफार्म मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जयकार व बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग से गूंज उठा। स्टेशन परिसर के बाहर से ही लोग नाच-गाना करते हुए रामलीला मैदान पहुंचे, जिसे देखने के लिए हर कोई अपने घरों से बाहर निकल आया था।
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विकलांगता पर भारी हक की मांग
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर हजारों लोग रामलीला मैदान में पहुंचे। इनमें आत्मविश्वास से लबरेज ऐसे विकलांग भी थे, जिनकी उमंग को देख अन्य लोग भी दंग रहे गए। बिहार सरकार की ओर से मिले व्हीलचेयर व स्वरोजगार चला रहे इन विकलांगों की खुशी यह साफ बयां कर रही थी कि कभी बाढ़ तो कभी सूखा से परेशान रहने वाले बिहार की पहचान अब बदल चुकी है।
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गुरुद्वारों व मस्जिद में गुजारी रात
रैली में शमिल होने के लिए आए कई लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने खुद के पैसों से यात्रा टिकट कराया था। लोगों का हुजूम तो रविवार को जुटा लेकिन इनके आने का सिलसिला शनिवार से ही शुरू हो गया था। कुछ लोगों ने दिल्ली-एनसीआर में रह रहे अपने रिश्तेदारों तो कुछ ने गुरुद्वारों व मस्जिद में रात बिताई।
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ट्रेनों में लटकाने के लिए उखाड़ ले गए होर्डिग
कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने रैली के बहाने रेल की मुफ्त यात्रा की। इनके कोच में टीटीई न आएं, इसके लिए रामलीला मैदान के आसपास लगे होर्डिग को उखाड़ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो गए। पूछने पर पटना के सोनू व दिलीप कहते हैं कि इस होर्डिग को ट्रेन की खिड़की पर लगाएंगे, ताकि टिकट जांचने टीटीई न आए और हम बिना टिकट घर पहुंच जाएं।
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महाभारत का रथ भी था यहां
रामलीला मैदान में महाभारत का रथ भी लाया गया था, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अर्जुन, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को सारथी और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष बलवीर सिंह ठाकुर को शेर दिखाया गया था। इस रथ ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।