हर दूसरी भारतीय लड़की की कम उम्र में शादी की जा रही है। 47 फीसदी बच्चियां यहां 18 से कम में ही ?याही जा रही हैं जिससे उनकी पढ़ाई, सेहत और भविष्य बिगड़ रहा है। – 8 मार्च 2013 को संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड की रिपोर्ट
16 क्या, सेक्स संबंध तो 14 वर्ष के बच्चों के मान्य होने चाहिए क्योंकि वे अब ‘सहमति’ और शोषण में अंतर बखूबी
समझते हैं। – केंद्रीय कानून मंत्रालय का नोट, 6 मार्च 2013 को।
बच्चों को 14 साल की उम्र में ही सेक्स संबंध बना लेने चाहिए? 16 वर्ष तो निश्चित ही कर देना चाहिए। ‘चाहिए’, ऐसे सीधे? सीधे तो सरकार ने नहीं कहा है। किन्तु आशय यही है। होगा यही। और सरकार की ऐसी अचानक चिंता बच्चियों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही सामने आई है। दो दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में इस पर फैसला होना था। नहीं हो सका। क्योंकि तीन मंत्रालयों के विचार अलग-अलग थे। गृह मंत्रालय का सोचना है कि लड़के-लड़की के बीच सहमति से सेक्स संबंध की उम्र घटाकर 16 वर्ष कर देनी चाहिए। इस पर कानून मंत्रालय का कहना था कि 14 वर्ष बेहतर है। और महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय इन सबके विरोध में था। वह इसे मौजूदा 18 वर्ष ही रखने पर आमादा है।
हमारे बच्चों पर लिया जा रहा है यह फैसला। हमें किसी ने पूछा ही नहीं। हमारे द्वारा चुन कर भेजे गए सांसदों को बताया ही नहीं। देश में कोई बहस होने ही नहीं दी गई। महिलाओं की गरिमा न गिरे, इस पर कठोर कानून बनाने के गंभीर वादे को समय पर लागू न कर पाई यह सरकार एक अध्यादेश लाई थी। बस उसी अध्यादेश को कानून बनाने की जल्दी में आनन-फानन में कुछ भी फैसले लिए जा रहे हैं। अपराधियों के विरुद्ध तो मौत की सजा देने से बुरी तरह डर गई यह सरकार। हमारे बच्चों को कितनी छोटी से छोटी उम्र में यौन संबंध बनाने की छूट देनी चाहिए, इस पर होड़ मची हुई है केंद्रीय मंत्रियों में!
ऐसा क्यों? क्योंकि वे जानते हैं, कुछ नहीं होता। कुछ नहीं होगा। कोई नहीं पूछेगा। जब इतनी बड़ी युवा क्रांति के बाद किसी यौन अपराधी का कुछ नहीं बिगड़ा। इतनी चीत्कार के बाद भी महिला गरिमा गिराने की अलग-अलग ‘कैटेगरी’ रखी गईं। इतना नैतिक दबाव होने के बावजूद मृत्युदंड को केवल ‘जघन्यतम’ यानी ‘रेअरेस्ट ऑफ द रेअर’ अपराध में ही रखने की जि़द पर अड़ी रही यह सरकार। तो क्या डर इसे किसी आम भारतीय नागरिक का कि वह क्या सोचेगा? प्रश्न महिलाओं की गरिमा गिराने वाले नृशंस अपराधियों को थरथर कंपकंपा सके, ऐसा सख्त कानून लाने का था। सारी बहस की दिशा पहले तो बदल दी स्वयं जस्टिस वर्मा आयोग ने। वह अपनी मूल बात से भटक कर न जाने किस-किस विषय में चला गया। प्रश्न उस जघन्यतम पाप करने वाले को लेकर उठा था। बालिग उम्र की सीमा से वह कुछ महीने कम था। दावा तो यही था। तो वह सजा में ‘उम्र कम है’ कह कर छूट रहा था। ऐसा न हो, इस पर उपाय चाहा था। तो जस्टिस वर्मा आयोग न जाने विश्व के किन-किन वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, मनोविश्लेषकों के माध्यम से यह समझता रहा कि कच्ची उम्र के अपराधी बालिग होते ही अपने पुराने अपराधों से स्वयं असहमत हो जाते हैं। इसलिए उन्हें सजा नहीं मिलनी चाहिए!
विदेशों में संवेदनाओं का महत्व शून्य है। वैल्यू, फैमिली वैल्यू सिस्टम तो है ही नहीं। वहां भावनाओं का सम्मान नहीं। ऐसी व्यवस्था में उपजे विचारों को हमारे भारतीय समाज पर थोपना कितना सही है? विशेषकर जबकि सारा राष्ट्र भावनाओं से उद्वेलित हो, क्रुद्ध हो, रो रहा हो?
तो कहां बात जघन्य अपराधियों की उम्र सीमा घटाने की चल रही थी, उसकी जगह बात बच्चों के बीच संबंधों की उम्र सीमा घटाने पर होने लगी। देखिए, क्यों कह रहे हैं मंत्रालय ऐसा।
गृह मंत्रालय लाया है ऐसा प्रस्ताव। उसका कहना है वह लड़कियों को बचाना चाहता है, इसलिए उम्र 16 करना चाहता है। किससे बचाना चाहता है? वह चिंतित है कि कुछ लड़के-लड़कियां अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध जीवन साथी चुन लेते हैं। विवाह के पूर्व उनमें संबंध स्थापित हो जाते/सकते हैं। ऐसे में माता-पिता उन पर यौन शोषण या दुष्कर्म के आरोप लगा देते/सकते हैं। अभी कानूनन ऐसा माना भी जाएगा, चूंकि सहमति के साथ संबंध की उम्र 18 ही है। फिर पुलिस परेशान करेगी। ज्या़दती करेगी। अत्याचार।
यानी, माता पिता से बचाने के लिए घटाई जा रही है संबंधों की उम्र!
कानून मंत्रालय को लागू करने हैं ये कानून। वह एक कदम और आगे है। वह चाहता है यह उम्र 14 ही कर दी जाए। तर्क है नई पीढ़ी बखूबी समझती है कि सहमति से संबंध क्या हैं और बलपूर्वक किया यौन अपराध क्या। यही नहीं, कई महिला संगठन भी उम्र घटाने की बात कर चुके हैं। उनका हवाला भी दिया जा रहा है। टीन एज सेक्स का अपराधीकरण इससे रोका जा सकेगा, यह कहा जा रहा है।
उधर, महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय इसका विरोधी है। महिला सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी है। उनकी मंत्री कृष्णा तीरथ ने कहा है कि इससे कम उम्र की लड़कियों का शोषण बढ़ेगा। बच्चों को शिकार बनाने का निमंत्रण है ऐसा कदम। विशेषकर तब, जबकि शादी की उम्र तो 18 वर्ष ही वैध है।
सरकारें जो चाहे, तय कर देती हैं/रही हैं। किन्तु क्या वह, बगैऱ किसी राष्ट्रीय बहस के, हमारे बच्चों के नितांत निजी और परिवार-समाज की संरचना से जुड़े इतने संवेदनशील मामले को इतने हलके तरह से तय कर सकती है? किसने दिया उसे यह अधिकार?
एक वर्ष भी नहीं हुआ। जब संबंधों की उम्र 18 मंजूर की गई थी। चाइल्ड मैरिज प्रोटेक्शन एक्ट, 1929 में यह 18 है। प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेन्स,2012 में यह 18 है। यहां तक कि इस अध्यादेश तक में क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) आर्डिनेंस 2013 में भी 18 ही है। तो अब अचानक 16 या 14 क्यों कर देंगे? क्या हम पहले नासमझ थे?
सरकार हमसे सारी बातें पूछे, यह असंभव है। किन्तु पूछनी ही होंगी। विशेषकर ऐसे फैसले। भयावह हो सकते हैं ऐसे फैसले। छोटी उम्र की बच्चियां, शादी से पहले गर्भवती होने लगेंगी कानूनन। गर्भपात होने लगेंगे? कानूनन। लड़कियों की तस्करी जैसे पाप बढ़ने लगेंगे। पकड़े जाने पर काफी कुछ सामने लाया जाएगा कानूनन। हमारे सामने स्पष्ट यह भी है कि जिन्हें संबंध बनाने हैं वे तो बना ही रहे हैं/ बनाते रहेंगे। रुकेंगे नहीं। किन्तु रुक तो कुछ भी नहीं रहा। जघन्य हत्याएं। नृशंस दुष्कर्म। और कोई भी भयावह अपराध। तो क्या सभी में उम्र घटा दें? सजा की उम्र भी घटा दें? धाराएं ही घटा दें? हम ही न घट जाएं!