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सरकार बेपरवाह लेकिन यमुना बचाने को बढ़ रहा है कारवां

नई दिल्ली। यमुना बचाओ आंदोलन के समाधान की जिम्मेदारी अफसरों के कंधों पर डाल सरकार बेपरवाह नजर आई। सोमवार की अधूरी बैठक मंगलवार को राज्यों को कुछ नसीहतें देकर समाप्त हो गई। चार राज्यों के जल संसाधन सचिवों की बैठक में हरियाणा को जहां पानी छोड़ने को कहा गया, वहीं दिल्ली को उसके गंदे नालों पर रोक लगाने की हिदायत दी गई। उत्तर प्रदेश को उसके आठ शहरों में सीवरेज के ट्रीटमेंट का निर्देश दिया गया। हरियाणा के 12 शहरों में लगाए गए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट निष्क्रिय हैं, उन्हें तत्काल चालू करने को कहा गया है।

यमुना बचाओ आंदोलन के अगुवा रमेश बाबा का कहना है कि सरकार की ओर से वार्ता का प्रस्ताव आया है। लेकिन, प्रधानमंत्री कार्यालय ने देर शाम तक इसकी पुष्टि नहीं की। खुफिया एजेंसियों से जो सूचनाएं मिली हैं, उसे लेकर सरकार बहुत चिंतित नहीं है। सरकार के कुछ लोग आंदोलन में भाजपा नेता उमा भारती के हिस्सा लेने को देखते हुए इसे भाजपा प्रायोजित करार देने में लगे हैं। यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अब तक 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन प्रदूषण कम होने के बजाए और बढ़ा है। आंदोलनकारियों की नाराजगी की एक बड़ी वजह यह भी है। जल संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि दिल्ली के लिए यमुना में जितना पानी छोड़ा जाता है, उसका 90 फीसद से भी अधिक उपयोग कर लिया जाता है। यमुना में सीवर और कारखानों का 60 फीसद प्रदूषित व कचरायुक्त पानी नदी में बहता है। दरअसल, यमुना की धारा समाप्त हो गई है, लिहाजा वह खुद को साफ करने में नाकाम है।

उत्साह से लबरेज मंजिल को बढ़ रहा कारवां उत्साह से लबरेज कानों पर मोबाइल फोन लगाए इला और उर्वशी बेन तेज कदमों से पदयात्रा के कारवां के साथ आगे बढ़ रही हैं। हालांकि वह दोनों थकी हुई दिखती हैं, पर अपनी यमुना मैया के लिए निकली पदयात्रा में थकान को अपने ऊपर हावी नहीं होने देती और चेहरे पर मुस्कान लिए वह आगे बढ़ती जाती हैं।

इला व उर्वशी अपने अन्य परिजनों के साथ गुजरात के राजकोट से आई हैं। यमुना मुदैनिक्तिकरण पदयात्रा में तेज कदमों से चलते-चलते बातचीत में इला व उर्वशी अंग्रेजी में कहती हैं कि शी इज नॉट वेल, शी इज अवर मदर, इफ वी विल नॉट फाइट फॉर यमुना, देन वू विल उनका इशारा पवित्र यमुना नदी की तरफ था। हिंदू सनातन संस्कृति में पुष्टि मार्ग संप्रदाय को मानने वाली संभ्रांत वर्ग की इन महिलाओं ने कहा कि जब घर में कोई अपना बीमार होता है, तो उसके इलाज के लिए हम दौड़ भाग करते हैं। यमुना जी हमारी माता हैं, तो उनके इलाज के लिए तो आगे आना ही पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यमुना के प्रदूषित होने के कारण हम आचमन के लिए शुद्ध जल नहीं ले पा रहे। अब हम यमुना की शुद्धि के लिए ही प्रण लेकर पदयात्रा में शामिल हुई हैं।

इसीलिए वह अपना घर बार छोड़ कर आई हैं। बच्चों की परीक्षाएं हैं, वह घर पर हैं। उनकी चिंता जरूर है, पर हम उन्हें अपने ईष्ट देवता ठाकुर जी के भरोसे छोड़ कर आई हैं। मोबाइल फोन पर हम राजकोट में अपने बच्चों व परिजनों से ही बात कर रहे थे और उन्हें यात्रा के उत्साह की बाबत जानकारी दे रहे थे, साथ में बच्चों को अपना ख्याल रखने व पढ़ाई पर ध्यान देने की बात भी कह रहे थे।

यमुना के भगीरथ

यमुना रक्षक दल के संत जयकृष्ण दास ने कहा कि यमुना नदी चल तो यमुनोत्री से रही हैं, लेकिन इलाहाबाद के प्रयाग में गंगा के साथ संगम नहीं हो रहा है। श्रद्धालु जिसे यमुना का निर्मल जल समझ रहे हैं, वह सही मायने में दिल्ली व इससे आगे के क्षेत्रों से पहुंच रहा गंदा जल है। संतों ने अब बीड़ा उठाया है कि यमुनोत्री को प्रदूषण बनाने के बाद ही अगला कुंभ नहाएंगे।

आचार्य गोस्वामी पंकज कहते हैं कि बात केवल यमुना के प्रदूषण की नहीं बल्कि यह है कि यमुना ब्रज क्षेत्र से विलुप्त कर दी गई है। ओखला बैराज के आगे यमुनोत्री नहीं बल्कि दिल्ली के छोटे बड़े नालों व सीवरेज का पानी बहाया जा रहा है। दिल्ली में सरकार ने यमुना के जल को अपने तक समेट रखा है।

NCR Khabar News Desk

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