राजनीति

ये हैं देश के 10 बाहुबली, डॉन और सरदार जो बने गये सरकार

नई दि‍ल्‍ली. हाल ही में डीएसपी जि‍या उल हक मर्डर केस में फंसे यूपी के पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अकेले ऐसे नेता नहीं, जि‍न्‍होंने अपने आतंक और अपराध के रास्‍ते वि‍धानसभा पहुंचने और मंत्री पद पाने में कामयाबी पाई। शहाबुद्दीन और अतीक अहमद से लेकर अरुण गवली तक ऐसे लोगों की लि‍स्‍ट काफी लंबी है। प्रस्‍तुत है देश के दस ऐसे सबसे बड़े दबंगों की कहानी, जो अपने आतंक के बल पर नेता तो बने ही, नेता बनने के बाद भी उन्‍होंने आतंक और अपराध का रास्‍ता नहीं छोड़ा। यहां तक कि वे अपनी सत्‍ता जेल से ही चलाते रहे।

साहब माने शहाबुद्दीन माने डॉन

पहले निशानेबाज और बाद में पॉलिटिकल सायंस में पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन को राजनीतिक में आतंक, डॉन और समानांतर सरकार चलाने वाले के रूप में माना जाता है। हथियारों के सौदागर से लेकर पुलिस दल पर हमला करने वाले शहाबुद्दीन का सियासी सफर 1990 के विधानसभा चुनाव से शुरू होता है। उस वक्त वह सीवान के जीरादेई (देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का गांव है) विधानसभा सीट से निर्दलीय चुने गये। दो टर्म विधायक रहे और उसके बाद सांसद। 2009 के चुनाव में उनकी पत्नी हिना शहाब ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और निर्दलीय ओम प्रकाश यादव ने उन्हें शिकस्त दी।
इसके पहले भाकपा माले के एक कार्यकर्ता के अपहरण और हत्या के मामले में अदालत से उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिल चुकी थी। शहाबुद्दीन का आतंक इतना था कि चुनाव के दौरान सीवान में दूसरी किसी पार्टी का झंडा-बैनर लगाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता था। लेकिन भाकपा माले के साथ शहाबुद्दीन का गहरा टकराव था। 1990 से 1997 तक माले के 70 से अधिक कार्यकर्ताओं-समर्थकों को मारा गया। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर और श्याम नारायण यादव को गोलियों से उस वक्त छलनी कर दिया गया था जब वे सीवान के जेपी चौक पर नुक्कड़ सभा कर रहे थे। शहाबुद्दीन का खौफ इस कदर है कि उन पर चल रहे मुकदमों की सुनवायी सीवान जेल के भीतर की जाती है।
नेता जी ने इस बाहुबली को बनाया था बिहार सपा का मुखिया

वैसे इनका नाम तो राजेश रंजन है पर पप्पू यादव से इनकी खास पहचान है। चार बार सांसद रहे पप्पू यादव ने अपना राजनीतिक कॅरियर 1990 से शुरू किया था। निर्दलीय होकर विधानसभा पहुंचे और 1991 के लोकसभा चुनाव में उन्हें लालू प्रसाद ने जनता दल से टिकट दिया था। यादव पर 15 आपराधिक मामले हैं। माकपा विधायक अजित सरकार हत्याकांड में बाहुबली राजन तिवारी सहित दो अन्य आरोपियों के साथ सीबीआई की विशेष अदालत ने इस बाहुबली राजनीतिज्ञ को आजीवन कारावास की सजा दी। यह बात 2008 की है। सरकार की हत्या पूर्णिया में 14 जून 1998 को गोली मार कर दी गयी थी। इसके पहले जब उन पर सरकार की हत्या के आरोप लगे को लालू प्रसाद ने उन्हें अपनी पार्टी से बाहर कर दिया। लेकिन समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह ने उन्हें ठौर दिया और उन्हें बिहार में सपा का प्रमुख बना दिया। उनकी पत्नी रंजिता रंजन फिलहाल कांग्रेस में हैं। वह लोकसभा सदस्य रह चुकी हैं।
डीएम की हत्या में सजा पाये आनंद मोहन लिख रहे कविताएं

आनंद मोहन नामक इस पौध का राजनीति में पदार्पण भी 1990 में हुआ। तब पहली बार सहरसा से विधायक बने और उसके बाद का सफर खूरेंजी रहा। पप्पू यादव से हिंसक टकराव की घटनाएं देश र में सुर्खिया बनीं। 1994 में उनकी पत्नी लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा का उप चुनाव जीतकर राजनीति में अपनी धमाकेदार एंट्री की थी। आनंद मोहन की पहचान एक बाहुबली और दबंग राजनीतिज्ञ की रही है। 1994 में हुए गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड में आनंद मोहन को निचली अदालत ने फांसी की सजा दी। पटना हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस सजा को बरकरार रखा। इसके पहले वह राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी और समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके थे। स्वतंत्रता सेनानी के परिवार वाले पृष्ठभूमि से आनेवाले आनंद मोहन सहरसा जेल में बंद हैं। जेल में उन्होंने कविताओं की किताब लिखी: कैद में आजाद कलम। इस किताब का लोकार्पण भाजपा नेता जसवंत सिंह और राजीव प्रताप सिंह रूडी ने किया था। उनकी पत्नी लवली आनंद इन दिनों कांग्रेस में हैं।
डॉन माने जाते हैं अधीर

आरएसपी से अपना सियासी सफर शुरू करने वाले अधीर रंजन चौघरी की पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में तूती बोलती है। कहते हैं कि उनके जिले में पत्ता अधीर रंजन चौधरी के कहने-इशारे पर ही खड़कता है। 1996 में जब उन्हें कांग्रेस ने टिकट दिया तब ममता बनर्जी उनके खिलाफ खुलेआम सड़क पर उतर गयी थीं। उन्होंने दागी अधीर को टिकट देने के खिलाफ आत्मदाह का ऐलान किया था। तब ममता कांग्रेस में थीं। अधीर पर हत्या जैसे संगीन मामलों के आरोप  लगे। जेल गये। बताया जाता है कि मुर्शिदाबाद के टाउन क्लब में उनका सिंहासन सजता है। जानकार कहते हैं: वैसे तो पश्चिम बंगाल की राजनीति में कई बाहुबली राजनीतिज्ञ हैं। पर सब पर भारी पड़ते हैं अधीर। यही वजह है कि उन्हें केंद्र में मंत्री बनाये जाने को लेकर झिझक थी। बाद में पश्चिम बंगाल की स्थानीय राजनीति में उनके प्रभामंडल को देखते हुए मंत्री बनाया गया। हालांकि खुद अधीर अपने ऊपर लगे आरोपों को साबित करने की चुनौती भी देते रहे हैं।
अपराध के प्रतीक अतीक 

वि‍धानसभा चुनाव में दि‍ए शपथ पत्र के मुताबिक हाईस्‍कूल फेल अतीक अहमद के खिलाफ 44 मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं। इसमें हत्या, हत्या की कोशिश समेत कई धाराओं में रिपोर्ट दर्ज है। गुण्डा एक्ट, गैंगस्टर, 7 क्रिमिनल लॉ अमेण्डमेण्ट एक्ट और आयुध अधिनियम के तहत भी कार्रवाई की गई है। अधिकांश संपत्तियों व वाहनों को सीज करने का जिक्र भी किया गया है।
इसमें उनके खिलाफ 44 मामले शहर के सिविल लाइंस, धूमनगंज, खुल्दाबाद, कर्नलगंज, करेली, शाहगंज, कोतवाली, जार्जटाउन, कीडगंज थाने में दर्ज हैं। हजरतगंज लखनऊ में भी मुकदमा लिखा गया है। सीबीआइ ने भी रिपोर्ट दर्ज कराई है। इसमें हत्या के छह, हत्या की कोशिश के पांच और धोखधड़ी के चार मामले शामिल हैं। हजरतगंज लखनऊ में कई धाराओं के साथ मुकदमा तो दर्ज है ही, एससी/एसटी के तहत भी रिपोर्ट लिखी गई है।कई मामलों में पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट भी लगा दी है। हालांकि, किसी मामले में उन्हें सजा नहीं हुई है। चल संपत्तियों की बात करें तो अतीक अहमद के कई बैंक खाते कुर्क हैं। अचल संपत्तियों की बात करें तो इसमें भी अधिकांश सीज हैं। हालांकि, वह करोड़पति हैं। चल और अचल संपत्ति तीन करोड़ से अधिक है।
मुख्‍तार की मुख्‍तारी 

निर्वाचन क्षेत्र मऊ और घौसी के कौमी एकता दल के उम्मीदवार मुख्तार अंसारी ने अपने विरूद्ध सबसे ज्यादा आपराधिक मामले घोषित किये है। इनमे 15 आपराधिक मामलो मे से 9 गंभीर आईपीसी वाले मामले है। उत्तर प्रदेश के माफ़िया राजनेताओं में मुख़्तार अंसारी सिरमौर माने जाते हैं. उनके ख़िलाफ़ हत्या, अपहरण, फिरौती सहित कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। भारतीय जनता पार्टी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के सिलसिले में उन्हें दिसंबर 2005 में उन्हें जेल में डाला गया था, तब से वो बाहर नहीं आए हैं। जेल में रहते हुए ही उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। ये उनकी लगातार चौथी जीत है। मुख़्तार अंसारी पर आरोप है कि वो ग़ाज़ीपुर और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में सैकड़ों करोड़ रुपए के सरकारी ठेके नियंत्रित करते हैं। एक दौर में वो बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के बहुत क़रीब रहे और बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव भी जीते पर 2010 में मायावती ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद मुख्तार ने कौमी एकता पार्टी बनाई और 2012 का चुनाव जेल में रहते हुए जीत लिया।
राजा भैया 
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में कुंडा क़स्बे के निवासी राजा भैया का अपराध की दुनियासे पुराना संबंध है।
भारतीय जनता पार्टी के एक असंतुष्ट विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने उनके ख़िलाफ़ अपहरण और यंत्रणा देने की शिकायत दर्ज की। तब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती थीं। सरकार के आदेश पर पुलिस अधिकारी आर एस पांडेय के नेतृत्व में राजा भैया को तड़के गिरफ़्तार कर लिया गया और उन पर आतंकवाद विरोधी क़ानून (पोटा) लगाया गया। लेकिन 2003 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने राज्य विधानसभा चुनाव जीत लिया और सरकार में आते ही राजा भैया के ख़िलाफ़ पोटा के तहत आरोप वापिस ले लिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिर भी राजा भैया को रिहा करने से इंकार कर दिया। लेकिन राजा भैया को गिरफ़्तार करने वाले पुलिस अधिकारी आरएस पांडेय ने शिकायत दर्ज करवाई कि राजा भैया उन्हें परेशान कर रहे हैं। कुछ समय बाद आरएस पांडेय एक सड़क दुर्घटना में मारे गए। इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है। पुलिस रिकॉर्ड में राजा भैया और उनके पिता उदयप्रताप सिंह दोनों को हिस्ट्री शीटर बताया गया है। लेकिन दोनों अपराध के आरोपों से इंकार करते रहे हैं।
अरुण गवली 

अरुण गुलाब गवली को उनके समर्थकों के बीच ‘डैडी’ के नाम से जाना जाता है। वे मुंबई में सातरस्ता के बाइकुला में दाग्दी चॉल में रहते हैं। 2004 में उन्हें अखिल भारतीय सेना उम्मीदवार के रूप में मुंबई चिंचपोकली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से एक विधायक चुना गया। ऐसा माना जाता है कि एक स्थानीय बालक के रूप में उनकी देसी जड़ों के यहीं बसे होने के कारण ही गवली का महत्त्व इस क्षेत्र में इतना बढ़ गया है, यही विशेषता उन्हें अधिकांश अन्य गैर-मराठी भाषी सरगनाओं से विभेदित करती है। उनकी पत्नी आशा, उर्फ मम्मी, पुणे के वदगांव-पांचपीर जिले के मोहम्मद शेख लाल मुजावर नान्हुभाई की बेटी थीं।
एक समय पर गवली को बाल ठाकरे का सक्रिय समर्थन प्राप्त हुआ, परन्तु बाद में ठाकरे और शिवसेना के साथ उनके संबंध टूट गए, जब गवली के लड़कों ने निर्दयता से कई शिवसेना विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को मारा। डैडी कई बार जेल में आता जाता रहा है और उसने 10 साल से ज्यादा समय न्यायिक हिरासत में बिताया है, परन्तु वास्तव में उसे कभी भी दोषी नहीं ठहराया गया है। मोबाइल फोन और अपनी इच्छुक जेल और पुलिस अधिकारियों की मदद के साथ, गवली नासिक, पुणे और येरावाडा में जेल में से ही अपहरण, जबरन वसूली और हत्या के आपराधिक साम्राज्य को बड़ी कुशलता और बेरहमी के साथ चलाता रहा। यहीं पर, अन्य दलों से आये अपराधियों और असंतुष्ट नेताओं से उसका राजनीतिक दल, अखिल भारतीय सेना तैयार हो गया। जेल भी उसके लिए एक सुरक्षित अड्डा था, जहां से उसे अपने प्रतिद्वंदियों दाऊद इब्राहिम/ छोटा शकील और छोटा राजन गिरोहों के द्वारा किये गए हत्या के प्रयासों को रोकने में मदद मिली।
राजनीति में प्रवेश करने और महाराष्ट्र विधान सभा में सदस्य बनने के उसके फैसले ने सुनिश्चित किया कि अब उसे पुलिस के द्वारा एनकाउन्टर में मारा नहीं जा सकता। गवली ने मम्मी उर्फ आशा गवली के साथ विवाह किया और उसके दो बच्चे हैं। गवली के राजनीतिक डिजाइन को एक झटके का सामना करना पड़ा जब उसका भतीजा और पार्टी का विधायक, सचिनभाऊ अहीर, खुले तौर पर उसके विरोध में खडा हो गया और शरद पवार की एनसीपी में शामिल हो गया।
ये हैं देश के 10 बाहुबली, डॉन और सरदार जो बने गये सरकार
ढुल्‍लू महतो 
ढुल्‍लू महतो को वहां का रॉबिनहुड कहते हैं। जब वे अपनी टोयोटो फ़ोर्चूनर में कहीं जाते हैं तो एक दर्जन से ज्यादा गाड़ि‍यां उनके आसपास रहती हैं। कहा जाता है कि जब उनकी पत्नी सावित्री देवी धनबाद के मेयर का पर्चा दाखिल करने गईं थीं तो लगभग 30,000 बाईक सवार उनके समर्थन में उनके साथ गये थे, हालांकि सावित्री देवी का नामांकन 30 वर्ष से कम उम्र होने के कारण रद्द कर दिया गया था। ढुल्‍लू महतो का अपनी कमाई को अपने साथ काम करने वालों के साथ साझा करने के कारण वे बहुत लोकप्रिय हैं, कहा जाता है कि लगभग आधी कमाई वे अपने साथ काम करने वालों में बांटते हैं।
इंटर पास करने के बाद भारत कुकिंग कोल लिमिटेड के सिनिधि कोलिरि में सन 1994 में मजदूरी से काम करना शुरू किया था और जल्दी ही ढुल्‍लू महतो मजदूरों के लोकप्रिय नेता बन गये, वे मजदूर जो कि रेलवे वेगनों और ट्रक में कोयले की खदान से कोयला ढोते थे। सन 2000 में राबड़ी सरकार के एक मंत्री समरेश सिंह ने उनका प्रभाव देखा और ढुल्‍लू महतो को चीता फ़ोर्स का प्रमुख बना दिया। यह एक ऐसा ग्रुप था जो कि समरेश सिंह के लिये कोयला खदान क्षेत्र से टैक्स यानि कि उगाही का काम करता था। और पुलिस जब भी चीता फ़ोर्स के लोगों को रंगदारी लेने के जुर्म में ले जाती तो ढुल्‍लू महतो पुलिस पर दबाब बनाकर उनको छुड़ा लाता था।
ये हैं देश के 10 बाहुबली, डॉन और सरदार जो बने गये सरकार
भैया राजा 
मध्‍य प्रदेश से एमएलए रह चुके अशोक वीर वि‍क्रम सिंह उर्फ भैया राजा पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह के भतीजे के कत्‍लके आरोप में कई साल यूपी की जेल में काट चुके हैं। उन पर आरोप था कि उन्‍होंने नैनीताल में अकबर अहमद डम्‍पी के बंगले में सिद्धार्थ राव की हत्‍या कर दी थी। जब वह यूपी की जेल में बंद थे, इसी दौरान एमपी की सुंदर लाल पटवा सरकार ने उनकी झील को नेस्‍तनाबूद कर दि‍या था। यह तकरीबन बीस साल पहले की बात है।
जेल में बंद भैया राजा ने जेल जाते ही अदालत में अर्जी दी कि वह काफी बीमार हैं। लेकिन जेल दि‍वस के मौके पर भैया राजा तत्‍कालीन जेल अधीक्षक व जेल सचि‍व के साथ जेल में ठुमके लगाते नजर आए। लोगों का कहना है कि जेल में उनका राज चलता है।
इतना ही नहीं, अपनी नाति‍न के साथ अवैध संबंध और उसकी हत्‍या के मामले में जब राजा भैया को अदालत में पेश कि‍या जा रहा था, लोग बार बार आकर उनका पैर छू रहे थे। सुरक्षा कारणों से जब थाना इंचार्ज ने लोगों को ऐसा करने से मना कि‍या तो उन्‍होंने टीआई को ही जान से मारने की धमकी दे डाली। इसका मुकदमा भी दर्ज है।
छतरपुर के काफी लोगों का मानना है कि भैया राजा अपने दुश्‍मनों को अपनी झील में फेंक देते थे। वहां पर उन्‍होंने मगरमच्‍छ पाल रखे थे जो मि‍नटों में जिंदा आदमी की हड्डि‍यां तक चट कर जाते थे। इसी के चलते तत्‍कालीन सुंदर लाल पटवा सरकार को उनकी झील को नेस्‍तनाबूद करना पड़ा था। बाद में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री उमा भारती ने भी भैया राजा की झील व बंगले पर बड़ी कार्यवाही की थी।

NCR Khabar News Desk

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