उत्तर प्रदेश में सरकार की नाक के नीचे फर्जी स्कूल बोर्ड चल रहा है। ‘बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन, दिल्ली’ के नाम से चल रहे इस बोर्ड ने प्रदेश में लगभग 150 स्कूलों को मान्यता दे रखी है। लखनऊ में लगभग दो दर्जन स्कूल इससे संबंद्घ है।
मान्यता न होने के बाद भी ये बोर्ड हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परिक्षाएं आयोजित करा रहा है और विद्यार्थियों का मार्क्सशीट और सर्टिफिकेट बांट रहा है। नतीजतन लगभग 20 हजार विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लग गया है।
दिल्ली से मान्यता का दावा
बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन, दिल्ली के समन्वयक आरके श्रीवास्तव का दावा है कि बोर्ड का पंजीकरण दिल्ली में किया गया है। उनका दावा है कि बोर्ड की स्थापना 1930 में की गई थी।
हालांकि रविवार को लखनऊ में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस जब बोर्ड की असलियत को लेकर सवाल उठाए गए तो वे कांफ्रेंस छोड़कर भाग निकले।
आरके श्रीवास्तव बोर्ड के मुख्यालय तक के बारे में सही जानकारी नहीं दे पाए। कांफ्रेंस में बताया गया कि बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन का मुख्यालय दिल्ली के कड़कड़डूमा इलाके में है। जबकि बोर्ड द्वारा जारी किए गए इंटरमीडिएट के अंक पत्र पर इसका मुख्यालय गोपालपुर गांव (तिमारपुर) दिल्ली-9 दिया गया है।
आरके श्रीवास्तव का दावा है कि बोर्ड का गठन 1930 में हुआ था, जबकि इसी अंक पत्र में गठन 1956 में गंगाराम आर्य नाम के शख्स द्वारा किए जाने की जानकारी दी गई है।
जानकारी के मुताबिक, 2005 के बाद से यह बोर्ड उत्तर प्रदेश में सक्रिय है और स्कूलों को मान्यताएं दे रहा है।
प्रदेश में 150 स्कूलों को मान्यता
बोर्ड ऑफ हायर सकेंडरी एजुकेशन ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में 150 स्कूलों को मान्यता दे रखी है।
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इसने प्रज्ञा बालिका इंटर कॉलेज समेरा, सिन्हा सीनियर सेकेंडरी स्कूल काकोरी, विंध्याचल देवी इंटर कॉलेज पलटन छावनी, मां सरस्वती इंटर कॉलेज सरोजनी नगर, संगीता सीनियर सेकेंडरी स्कूल सरोजनी नगर, आरजे जूनियर हाईस्कूल, एसके मॉण्टेसरी दुबग्गा बाइपास, ग्रीन-वे पब्लिक स्कूल दुबग्गा बाइपास समेत चार अन्य स्कूल का मान्यता दे रखी है।
प्रदेश में मैनपुरी, गाजीपुर, प्रतापगढ़, फीरोजाबाद, मथुरा, बांदा, आगरा, मुरादाबाद, वाराणसी, गोंडा, कांशीरामनगर, बागपत, बदायूं, जालौन, मेरठ, अलीगढ़, फैजाबाद, सीतापुर, उन्नाव, हरदोई और झांसी में इस बोर्ड से कई संबद्घ कई स्कूल हैं।
शासन ने क्यों नहीं कार्रवाई?
प्रदेश में इस प्रकार फर्जी बोर्ड चलने और धड़ाधड़ स्कूलों को मान्यता बांटने से शासन की कार्य शैली पर सवाल उठने लगा है।
शासन की ओर से दावा किया जा रहा है कि 1952 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) के कार्यक्षेत्र के विस्तार के बाद इस बोर्ड की मान्यता रद्द कर दी गई थी।
लेकिन प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विनियमों की खामी का फायदा उठा कर ये बोर्ड स्कूलों को मान्यता प्रदान कर रहा है।
इस संबंध में जब उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया, ‘शिक्षा परिषद ने इस बोर्ड को अमान्य कर चुका है, लेकिन शासन ने अब तक इसकी अनुमति नहीं दी है। इसलिए, अब गेंद शासन के पाले में है।’
सवाल यह है कि शासन ने अब तक इस फर्जी बोर्ड के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की है और उन स्कूलों से निकले स्टूडेंट्स का क्या होगा, जो इस बोर्ड से संबद्घ रहे हैं।