लाइफस्टाइल

अगर दुनिया हो महिलाओं की मुट्ठी में?

`बदलते समय ने समाज में महिलाओं की भागीदारी और उनकी भूमिका को लेकर कई नई परिभाषाएं गढ़ी हैं। क्योंकि कुछ समय पहले तक औरतों द्वारा पूरी दुनिया पर राज करने की बातें बेतुकी लगतीं थी।

इसके पीछे कोई विशेष दुराग्रह नहीं बल्कि सिर्फ जीव विज्ञान था। ऐसा माना जाता था कि महिलाओं में नैसर्गिक तौर पर ऐसा बौद्धिक सामर्थ्य कम होता है और मुश्किल परिस्थितियों में फ़ैसला लेने का धैर्य भी कम होता है।

लेकिन ये सब एक गुज़रे ज़माने की बातें है। हाल के दशकों में महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है। हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि पूरी दुनिया में आगे बढ़ रही और घर की चारदिवारी से बाहर अपनी पहचान बना रही महिलाओं का स्वागत हुआ है।

सकारात्मक बदलाव

तो क्या बदला है? बहुत कुछ। महिलाओं पर किए विभिन्न शोध और अनुभव बताते हैं कि समर्थ महिलाएं काफी कुछ बदल देती हैं। अगर किसी स्थिती को पूरी तरह से बदल नहीं सकतीं तो बेहतर तो कर ही सकतीं हैं।

व्यापार ज़्यादा लाभप्रद होते है, सरकारें लोगों से जुड़ती हैं, परिवार मज़बूत होते हैं और स्वस्थ समाज तैयार होता है। हिंसा कम होती है और शांति, स्थिरता और निरंतरता बढ़ती है।

इसकी वजह, महिलाओं के जिंदगी को देखने का अलग नज़रिया है, और यही अनुभव उन्हें परेशानियों को अलग तरीके से हल करने का रास्ता दिखाता है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लगार्ड कहती हैं कि विविधता एक बहुत बड़ी ताक़त है।

लगार्ड के अनुसार, ”विविधता दुनिया को देखने के नज़रिए में कई आयाम लाती है। इससे हम किसी एक मुद्दे की कई तरीकों से विवेचना कर सकते हैं। ये हमारी सोच को प्रभावित करता है।”

हमें अक्सर ये सुनने को मिलता है कि महिलाएँ चीज़ों को पुरुषों से अलग नज़रिए से देखती हैं। वे बातें करती हैं, सुनती हैं, बात करने को प्रोत्साहित करती हैं और सर्वसम्मति बनाने की कोशिश करती हैं।

अलग नज़रिया
कई अध्ययनों में भी यह पाया गया कि महिलाओं की नेतृत्व क्षमता पुरुषों से अलग होती है। उनका संपूर्ण नज़रिया काफी सहयोगपूर्ण और सबको लेकर चलने वाला होता है। ये सभी गुण आज की दौड़ती-भागती ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रुरत हैं।

होमलैंड सिक्योरिटी संस्था की अमेरिका सचिव जेनेट नेपोलिटानो के अनुसार, ”मेरे ख्याल से ये कहना सही है कि महिलाएं ना सिर्फ सबको साथ लेकर चलती हैं बल्कि वे समस्याओं को उलझाने के बजाए उन्हें सुलझाने में यकीन रखती हैं।”

आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति मैरी रॉबिन्सन कहती हैं, ”काम के दौरान कोई भी निर्णय लेने के समय महिलाएं की कई पीढ़ियों को ध्यान में रखती हैं, हमें ऐसे फ़ैसले लेने की ज़रुरत है जो हमारे बच्चों और उनके बच्चों को सुरक्षित दुनिया प्रदान करेगा और हम ऐसा कर पाने में सक्षम हैं।”

मैरी रॉबिन्सन मानती हैं कि महिलाओं से पुरुषों जैसा व्यवहार करने की उम्मीद की जाती है लेकिन अब उनका पुरुषों से अलग होना ही ताक़त माना जाता है।

अमेरिकी संसद की पहली महिला स्पीकर नैंसी पेलोसी की महिलाओं को राय है, ”आप इकलौती शख्स़ हैं जो अपना विशिष्ठ योगदान दे सकती हैं। इसलिए खुद को बदले नहीं क्योंकि आपकी मौलिकता ही आपकी ताक़त है।”

इसका मतलब ये नहीं है कि महिलाओं को दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता। उनके बारे में राय कायम करने में हमेशा दोहरापन होता है। उनकी उपलब्धियों को कम कर के आंका जाता है और उन्हें ग़लती करने का अधिकार भी कम होता है।

इसके बावजूद समर्थ महिलाओं का दुनिया के विकास में अहम योगदान है।

शांति दूत
महिलाओं का आत्मनिर्भर और समर्थ होना इसलिए भी ज़रुरी है कि क्योंकि उनका दुनिया में शांति बनाए रखने में अहम योगदान है। शायद इसलिए महिलाओं की भागदारी के बगैर किए गए आधे शांति समझौते असफल हो जाते हैं।

अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री कोंडिलीज़ा राइस कहती हैं कि, मैंने अपने अनुभव से सीखा है कि शांति वार्ताओं में महिलाओं को शामिल करना बेहद ज़रूरी है।

राइस के अनुसार, ”एक तरफ़ जहां महिलाएं परिवार, गांव, समाज और देश की रक्षा करती हैं तो दूसरी तरफ़ किसी भी लड़ाई या संकटग्रस्त इलाके में सबसे ज्य़ादा ख़तरा भी उन्हीं को होता है। इसलिए अगर हम उनकी मदद करेंगे तो बदले में वे भी समाज को काफ़ी कुछ दे सकेंगी।”

इसलिए महिलाओं को समर्थ करना सिर्फ राजनैतिक बयानबाज़ी नहीं है ये एक दूरगामी सोच हैं जिसका हमारे समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ये लड़ाईयों को कम करने, अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने और समुदायों को स्वस्थ बनाने का रास्ता है।

समर्थ महिलाओँ का हमारे आसपास होना सिर्फ सही नहीं बल्कि बेहद ज़रूरी है।

NCR Khabar Internet Desk

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