राजनीति

सीएम के पास 11विभाग, नहीं देते सवालों के जवाब

जयपुर । हमारे मुख्यमंत्री अपने पास कई विभाग तो रखते हैं, लेकिन विधानसभा में विधायकों के सवालों के जवाब नहीं देते। जबकि मध्य प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री ही आधे घंटे तक विधायकों के सवालों के जवाब देते हैं। झारखंड में भी मुख्यमंत्री के लिए अलग से ‘प्रश्नकालÓ की व्यवस्था है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास इस बार ११ विभाग हैं, लेकिन चार साल से इन विभागों से संबंधित सवालों के जवाब संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल देते हैं। यही व्यवस्था पिछली भाजपा सरकार में भी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधराराजे के विभागों से संबंधित जवाब तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री राजेंद्र राठौड़ देते थे। हालांकि कई ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जो अपने विभागों के अलावा अन्य मंत्रियों से जुड़े सवालों के जवाब भी देते रहे हैं।

मप्र ने इंग्लैंड का तरीका अपनाया

  •  इंग्लैंड के ‘हाउस ऑफ कॉमन्सÓ की तर्ज पर मप्र में 7 अगस्त, 2000 से मुख्यमंत्री के लिए आधा घंटे के ‘प्रश्नकालÓ की व्यवस्था शुरू हुई है।
  •  हर सोमवार को सुबह 11.30 से 12 बजे तक ‘मुख्यमंत्री प्रहरÓ नाम से होने वाले प्रश्नकाल में विधायक नियम 51 (क) के  तहत नीतिगत सवाल पूछ सकते हैं।
  •  हाउस ऑफ कॉमन्स में ‘प्रधानमंत्री का प्रहरÓ के नाम से प्रश्नकाल प्रधानमंत्री के लिए तय है।

कई मामलों में मप्र का अनुसरण 
सत्र के दौरान विधायकों को सवाल पूछने का अधिकार मप्र के बाद ही हमारे यहां दिया गया। अब हमारे विधायक  जब सत्र नहीं चल रहा हो, तब भी सवाल पूछ सकते हैं। इसी तरह जब मप्र के मुख्यमंत्री ने अपने पास कोई विभाग नहीं रखने का ऐतिहासिक फैसला किया तो गहलोत ने भी पिछले कार्यकाल में अपने पास कोई विभाग नहीं रखा था।

विभाग है तो जवाब भी दें मुख्यमंत्री : विधायक
भाजपा विधायक घनश्याम तिवाड़ी, राजेंद्र राठौड़, ओम बिड़ला, बनवारी लाल सिंघल और माकपा विधायक अमराराम के अनुसार मप्र जैसी व्यवस्था होनी चाहिए। एक तरफ तो जवाबदेही की बात हो रही है। मुख्यमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की मांग उठ रही है। दूसरी ओर सवालों के जवाब भी मंत्रियों से दिलवाए जा रहे हैं।
अब तो शून्यकाल में भी नहीं रहते सीएम
पहले के मुख्यमंत्री अपने विभागों से जुड़े सवाल खुद भी देते थे। शून्यकाल तक सदन में रहते थे। अब तो शून्यकाल से ही आधे से ज्यादा मंत्री और कई बार मुख्यमंत्री नदारद रहते हैं। मप्र जैसी व्यवस्था यहां भी होनी ही चाहिए।
-गुलाबचंद कटारिया, नेता प्रतिपक्ष
ऐसा कोई प्रावधान प्रस्तावित नहीं है
मुख्यमंत्री के प्रश्नकाल तय होने का कोई प्रावधान नहीं है। न ही ऐसी कोई व्यवस्था प्रस्तावित है।  -शांति धारीवाल, संसदीय कार्यमंत्री

NCR Khabar Internet Desk

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