नई दिल्ली रेलमंत्री पवन बंसल मंगलवार को दोपहर 12 बजे जब अपना पहला और संप्रग-दो सरकार का आखिरी पूर्ण रेल बजट पेश करेंगे। यह देखना सचमुच रोचक होगा कि यह पिछले रेल बजटों से कितना अलग होता है, क्योंकि सीके जाफरशरीफ के बाद यह पहला मौका है, जब रेल मंत्रालय पूरी तरह कांग्रेस के कब्जे में आया है। इस दरम्यान क्षेत्रीय दलों ने, एक-आध मौकों को छोड़, रेल बजट का इस्तेमाल अपनी राजनीति चमकाने में ही किया। फिर भी बंसल की राह आसान नहीं है। पहले ही किराये में इजाफा कर रेल बजट को बढ़ोतरी से मुक्त रखने का जो दांव उन्होंने खेला था, उसे डीजल के बढ़े दामों ने फेल कर दिया है, जबकि चुनावी मजबूरियां आगे खड़ी हैं। ऐसे में उनके समक्ष अपने बजट को स्पेशल 26 का तड़का देने की चुनौती है। ऐसे में वह ऐसे उपाय कर सकते हैं जिनसे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। इनमें एक उपाय यह है कि सीधी बढ़ोतरी के बजाय सेस लगा दिया जाए। यह यात्री और माल सेवाओं दोनों या किसी एक पर लग सकता है।
बंसल की सबसे बड़ी प्राथमिकता ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेहतर सुविधाएं देने की है। ट्रेनों में सभी को आसानी से आरक्षण मिले, भीड़ का समुचित प्रबंधन हो, अच्छा खाना मिले और टॉयलेट साफ सुथरे हों, यह तो वह सुनिश्चित करेंगे ही। इसके अलावा ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने, हादसे रोकने और जान-माल की क्षति को कम से कम करने पर भी उनका जोर रहेगा। इसी तरह वर्ल्ड क्लास स्टेशनों के बजाय उनकी कोशिश स्टेशनों को ऐसा लुक देने की रहेगी जो मौजूदा आदर्श स्टेशनों से बेहतर दिखाई दें। इस लिहाज से स्टेशनों को भीड़ के दबाव से मुक्त करने की उनकी कोशिश रहेगी। सभी रेलवे क्रॉसिंगों पर ओवरब्रिज न सही, वह कम से कम बैरियर और चौकीदार अवश्य सुनिश्चित करना चाहेंगे। साथ ही दुर्घटनाओं की जांच की ऐसी पुख्ता व्यवस्था करना चाहेंगे, जिसमें दोषियों को दंड की समुचित व्यवस्था हो।
जब लाइनों की क्षमता सीमित है तो हर साल दर्जनों ट्रेनों का एलान क्यों? इस सवाल का सीमित जवाब बंसल के रेल बजट में मिल सकता है। नई ट्रेनें उन्हीं लाइनों पर चलाई जाएंगी, जो खाली हैं। वोट बैंक के दबाव में जगह-जगह फालतू स्टापेज देने की परिपाटी बंद होगी। इसके बजाय जोर इस बात पर होगा कि कैसे डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर जल्द से जल्द पूरा हो। इसके लिए जितनी धनराशि, जो उपाय जरूरी हैं किए जाएंगे।
चुनाव के लिहाज से कुछ लोकलुभावन घोषणाएं भी बंसल करेंगे, लेकिन रेलवे की माली हालत के साथ समझौता किए बगैर। लक्ष्य वही रखे जाएंगे, जिन्हें पूरा करने की सामर्थ्य रेलवे के पास होगी। इससे लोकसभा चुनाव से पहले संभावित लेखानुदान में सरकार को अपनी पीठ थपथपाने का मौका मिलेगा।